Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ कुंदकुंदाचार्य चरित्र. १९ भावी स्थिति भयप्रद धशे, एवं जाणी भद्रबाहु मुनि पासे | दीक्षा लीघी अने तेणे तेमनुं शिष्यत्व स्वीकारी तेमनी साधे रहेवा लाग्यो. - भद्रबाहु मुनीए पण पोताना १२ हजार शिप्यो साथै, | दक्षिणमां नवानुं ठराव्युं, पण ते स्वत. अवधिज्ञानी (अंतर्ज्ञानी) होवाथी पोतानो अंत थोडा वखतमांज धवानो छे एवं जाणी योवाना 'विशाखा' नामक शिप्यने पट्टाचार्यनो अधिकार आप्यो, अने तेने दक्षिणमां रवाना करी पोते ध्यानस्थ रह्या, त्या रे चंद्रगुप्त पण वाकीना शिप्यो साथै दक्षिणमां न नतां गुरु पासेन रह्या. ते बार हजार पैकी रामाचार्य अने एक बे हजार आचार्ये पटणामां केटलाक श्रावकोए आ भयंकर दुष्काळमां संभाळ लेवानी विनति करवाथी पाटली पुत्रमा रह्या भा विनंति भद्रबाहुना शिष्याने करी हती, पण मोनी विनंति पर लक्ष न आपतां तेओ दक्षिणमां ठेठ गया. बंगालामां सांभळेला भविष्य प्रमाणे जेम जेम दुष्काल • पोतानुं उग्र स्वरुप प्रकट करवा लाग्यो, तेम तेम रामाचार्यादिकनी नित्य क्रिया डोलायमान थवा लागी, हुष्काळने -लइने पटणामा रहेला आचार्योनी एव भयभीत स्थिति थह के एक दिवस त्यां एक मुनि आहार लेवा जतां ए भुखथी

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61