Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ दिगबर जैन, काळा भयंकर सापने नाखी दीयो, पण आटलो भयंकर उपसर्ग मुनिने कर्या छतां मुनि ध्यान विरत थया नहि; वळी ते राजा आवृत्तात कहवाने चेलनादेवी पासे गयो. तणी आ जाणी व्याकुल चित्त थइ एकदम दोउती माची, अने मुनिने नमस्कार करी पोताना पतिए करेला अपराध बदल आलोचना करवा लागी लेणीए त्या सर्पने नोयो, के तरतज तेणीना कामळ हृदयह विदारण थयु ते सर्पने लाखो कोटी जाईने मुनिने थता त्रास बदल तेणीने अत्यंत दु ख थयु, अने एक्दम गळामाथी साप काढवा तत्पर थई, पण ते साय काडवार्थी लाखो जीवनी (कोडीनी] हींसा थशे, तेथी तेणीए दूत पासेथी साकर मगावी एक बाजु वेरी के तरतज कीडीओ साकर उपर आवी साप उपरथी उतरी गइ अने पिपिलिका रहित सर्प एकलो गळामा रह्यो. पछी ते सर्प काढी नाख्यो भने मुनिए ध्यान विसर्जन कर्यु. पछी रामा श्रेणिकने पोताना कृतकर्म बरल पश्चाताप थयो अने जैनधर्मनी सत्यता भासया लागी अन जैनधर्म ग्रहण को. पछी श्री महावीरस्वामीने तणे असंख्य प्रश्न पूछी पोतानी शकाभानु समाधान कयु. आ राजानी हैयातीमाज तेना एक पुत्रे जिनधर्मनी दीक्षा लीधी. आ राजा घणो न्यायी हतो. साराशक मा विविसार (श्रेणिक) राना श्री महावीर स्वामी

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