Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ १४ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न करते हैं कि दन्तकथा ( प्रसिद्ध - कथा - न्याय ) के अनुसार कुन्दकुन्दाचार्य स्वयं पूर्व विदेहमें गये थे और श्रीसीमन्धर स्वामी के पाससे विद्या सीखकर आये थे । श्रवणबेलगोलके शिलालेखों में भी, जिनका अधिकांश भाग बारहवीं शताब्दीका है, उल्लेख मिलता है कि कुन्दकुन्दाचार्य हवामें ( आकाशमें ) अधर चल सकते थे । श्वेताम्बरोंके साथ गिरनार पर्वतपर जो विवाद हुआ था, उसका उल्लेख आचार्य शुभचन्द्र ( ई० स० १५१६-५६ ) ने अपने पाण्डवपुराणमें किया है । एक गुर्वावलीमें भी इस बातका उल्लेख है ।' इतना तो निश्चित है कि दोनोंमें से कोई भी दन्तकथा हमें ऐसी जानकारी नहीं कराती जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके। उनमें थोड़ीबहुत जो बातें हैं, उनमें भी दोनों दन्तकथाओं में मतभेद है । बाक़ी आकाश में उड़नेको और सीमन्धर स्वामीकी मुलाक़ातकी बात कोई खास मतलबी नहीं । अतएव अब हमें दूसरे आधारभूत स्थलोंसे जानकारी पाने के लिए खोज करनी चाहिए । भद्रबाहुके शिष्य ? कुन्दकुन्दाचार्यने स्वयं, अपने ग्रन्थोंमें अपना कोई परिचय नहीं दिया । 'बारस अणुवेक्खा' ग्रन्थके अन्त में उन्होंने अपना नाम दिया है, और 'बोधप्राभृत' ग्रन्थके अन्त में वे अपने आपको 'द्वादश अंग-ग्रन्थोंके ज्ञाता तथा चौदह पूर्वोका विपुल प्रसार करनेवाले गमकगुरु श्रुतज्ञानी भगवान् भद्रबाहुका शिष्य' प्रकट करते हैं । 'बोधप्राभृत' की इस गाथापर श्रुतसागरने ( १५वीं शताब्दीके अन्त में ) संस्कृत टीका लिखी है । अतएव इस गाथाको प्रक्षिप्त गिननेका इस समय हमारे पास कोई साधन नहीं है । दिगम्बरोंकी पट्टावलीमें दो भद्रबाहुओं का वर्णन मिलता है । दूसरे भद्रबाहु १. देखो - जैनहितैषी पु० १० पृ० ३७२ ।

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