Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 31
________________ ३० कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे पदार्थोंका यथार्थ ज्ञान प्राप्त करनेवाला मनुष्य, निश्चित रूपसे मोहका क्षय करता है । जो मनुष्य आत्माका तथा आत्मासे भिन्न अन्य पदार्थोंका भेद-विज्ञान प्राप्त करता है, वह मोहका क्षय करने में समर्थ होता है (प्र० १, ८६ - ६) ___अन्य भूतप्राणियोंकी चक्षु, इन्द्रियां हैं और साधक पुरुषकी चक्षु शास्त्र है। विविध गुणों और पर्यायोंसहित समस्त पदार्थोंका ज्ञान शास्त्र में विद्यमान है । जिसका पदार्थविषयक श्रद्धान या ज्ञान, शास्त्रपूर्वक नहीं है, वह सच्ची साधना ( संयम ) का अधिकारी नहीं है - उसकी साधना सच्ची नहीं हो सकती। और जिसकी साधना ही सच्ची नहीं वह मोक्षमार्गी ( श्रमण ) कैसे हो सकता है ? (प्र० स० ३४-६) अतएव चार गतियों- देव, मनुष्य, तियंच, नारकभावसे छुटकारा दिलाकर निर्वाणपदपर पहुँचानेवाले और सर्वज्ञ महामुनियोंके मुखसे प्रकट हुए शास्त्रको नमस्कार करके, ( तदनुसार ) मैं जो कहता हूँ, श्रवण करो ( प० २)। २. द्रव्य-विचार छह द्रव्य-यह समग्र लोक जीव, 'पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, इन छह द्रव्योंका हो समूह है । ये द्रव्य सत् हैं । किसीने इन्हें बनाया नहीं है। ये स्वभावसिद्ध हैं, अनादिनिधन है त्रिलोकके कारण भूत है। एक द्रव्य, दूसरे द्रव्यमें मिल नहीं सकता - सभी अपने-अपने स्वभावमें स्थिर रहते हैं किन्तु परस्पर एक-दूसरेको अवकाश देते हैं। लोकसे बाहर केवल शुद्ध आकाश ( अलोकाकाश है ) । (पं० ३-४, ७, प्र० २,६) १. अन्य दर्शनोंमें जिस जड़ द्रव्यका प्रकृति और परमाणु आदि शब्दसे निर्देश किया गया है जैन परिभाषामें उसे पुद्गल कहते हैं। बौद्ध ग्रन्थों में पुद्गल शब्दका प्रयोग जीव या मनुष्य व्यक्तिके अर्थमें भी देखा जाता है।

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