Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 73
________________ ७२ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न 'की अधिकता है, ऐसे लोगोंको दान-सेवाके फल-स्वरूप हलके मनुष्यभवकी प्राप्ति होती है । जिन विषय-कषायोंको शास्त्रमें पापरूप प्रकट किया गया है, उनमें बँधा हुआ पुरुष मोक्ष किस प्रकार दिला सकता है ? वही पुरुष मोक्षरूप सुमार्गका भागी हो सकता है, जो पापकर्मोसे उपरत हो गया है, सब धर्मोमें समभाव रखती है और जो गुण समूहका सेवन करता है। अशुभ भावोंसे हटकर शुद्ध या शुभ भावमें प्रवृत्त पुरुष लोकको तार सकते हैं; उनकी सेवा करनेवाला अवश्य ही उत्तम स्थानका भागी होता है। (प्र. ३, ४५-६० ) विनय - उत्तम पात्रको देखकर खड़ा होना, वन्दन करना इत्यादि क्रियाएँ अवश्य करनी चाहिए । क्योंकि अपनेसे अधिक गुणवान्को आते देख खड़ा होना, उसका आदर करना, उसकी उपासना करना, उसका पोषण करना, उसे हाथ जोड़ना तथा उसे प्रणाम करना चाहिए, ऐसा जिन भगवान्ने कहा है । शास्त्रज्ञानमें निपुण तथा संयम, तप और ज्ञानसे परिपूर्ण श्रमणोंका, दूसरे श्रमण खड़े होकर आदर करें, उनकी उपासना करें और उन्हें नमन करें। अगर कोई श्रमण सयम, तप और ज्ञानसे युक्त है, परन्तु उसे जिन-प्ररूपित आत्मा आदि पदार्थों में श्रद्धा नहीं है, तो वह श्रमण कहलाने योग्य नहीं है । जो मुनि भगवान्के उपदेशके अनुसार वरतनेवाले श्रमणको देखकर द्वेषवश होकर उसका अपवाद करता है और उसके प्रति पूर्वोक्त विनय आदि क्रियाओंका प्रयोग नहीं करता, उसका चारित्र नष्ट हो जाता है । अपनेमें गुण न होनेपर भी, केवल श्रमण होने ही के कारण, जो मुनि अपनेसे अधिक गुणवान्से विनयकी आकांक्षा रखता है वह अनन्त संसारका भागी बनता है। इसी प्रकार श्रमणत्वके लिहाजसे अधिक गुण वाले मुनि, अगर हीन गुण वालेके प्रति विनय आदि क्रियाओंका आचरण करता है, तो वह असत्य आचरण करता है और चारित्रसे च्युत होता है। जिसे सूत्रोंके पद और अर्थका निश्चय हो गया है, जिसके कषाय

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