Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 109
________________ __९२; १०२ १०६ ११० कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न कार्मणशरीर -सर्वथा अकर्ता नहीं १२१ काल ३७, ३८, ४२, ४३, १२८ -ज्ञाता नहीं है १२४; केवलज्ञान ७०,७१ में रागादि नहीं है। १२५; क्षणिकवादी . १२४ ज्ञान ४९,७४;-के पाँच प्रकार१०७; क्षयभाव -और आचरण क्षयोपशमभाव -चेतना -ज्ञान ( देखो केवलज्ञान ) -भाव ज्ञानावरणीय कर्म ९८ (देखो क्षयभाव) गति नामकर्म ५४ ज्ञानी-और बंध गुण -मूर्त और अमूर्त ३६ -और भोग -और द्रव्यकी अनन्यता ४९ तप गुणस्थान ९५ तिर्यक्प्रत्यय चारित्र ७४, ७६ तैजस शरीर चेतना -गुण और व्यापार ४९; दर्शन ४९, ७४, ११२ -के तीन प्रकार ४९ दृष्टि -दो ९१; -मिथ्या ९४ जीव -का शुद्ध स्वरूप ६६; देह -के पांच प्रकार ५६ -की सर्वज्ञता ६७; द्रव्य -छह ३१;-की व्याख्या ३२ -की सर्वगतता -मूर्त और अमूर्त ३६; -की ज्ञायकता सक्रिय और अक्रिय ३९; -की पारमार्थिक सुखरूपता ७२; और गुण की अभिन्नता ४९; -का कर्तृत्व ५८; -कर्म ५९;-अप्रतिक्रमण ११४ -का भाव ५८; -के चेतनागुण ४९; द्रव्याथिक नय ३४, ५५ -के चेतनाव्यापार ४९; धर्म ३७, ३८, ४१ -के एकेन्द्रियादि धारणा छह प्रकार ५१; ध्यान -आर्त और रौद्र ६१ -बन्धका कर्ता नहीं है ११३; नय ३४, ९१ -कर्ता कैसे होगा ११९; नरकभूमि -सात ५४ ७०;

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