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कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न कार्मणशरीर
-सर्वथा अकर्ता नहीं १२१ काल ३७, ३८, ४२, ४३, १२८ -ज्ञाता नहीं है १२४; केवलज्ञान
७०,७१
में रागादि नहीं है। १२५; क्षणिकवादी . १२४ ज्ञान ४९,७४;-के पाँच प्रकार१०७; क्षयभाव
-और आचरण क्षयोपशमभाव
-चेतना -ज्ञान ( देखो केवलज्ञान ) -भाव ज्ञानावरणीय कर्म ९८ (देखो क्षयभाव) गति नामकर्म ५४ ज्ञानी-और बंध गुण -मूर्त और अमूर्त ३६ -और भोग
-और द्रव्यकी अनन्यता ४९ तप गुणस्थान
९५ तिर्यक्प्रत्यय चारित्र
७४, ७६ तैजस शरीर चेतना -गुण और व्यापार ४९; दर्शन ४९, ७४, ११२
-के तीन प्रकार ४९ दृष्टि -दो ९१; -मिथ्या ९४ जीव -का शुद्ध स्वरूप ६६; देह -के पांच प्रकार ५६
-की सर्वज्ञता ६७; द्रव्य -छह ३१;-की व्याख्या ३२ -की सर्वगतता
-मूर्त और अमूर्त ३६; -की ज्ञायकता
सक्रिय और अक्रिय ३९; -की पारमार्थिक सुखरूपता ७२; और गुण की अभिन्नता ४९;
-का कर्तृत्व ५८; -कर्म ५९;-अप्रतिक्रमण ११४ -का भाव ५८; -के चेतनागुण ४९; द्रव्याथिक नय ३४, ५५ -के चेतनाव्यापार ४९; धर्म
३७, ३८, ४१ -के एकेन्द्रियादि
धारणा छह प्रकार ५१; ध्यान -आर्त और रौद्र ६१ -बन्धका कर्ता नहीं है ११३; नय
३४, ९१ -कर्ता कैसे होगा ११९; नरकभूमि -सात ५४
७०;