Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 35
________________ ३४ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न ____ अस्तिकाय - पूर्वोक्त छह द्रव्योंमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश, यह पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं। जो पदार्थ गुण-पर्यायसे युक्त होता हुआ अस्तित्व स्वभाववाला ( उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यमय ) हो और अनेकप्रदेशी हो वह अस्तिकाय' कहलाता है ( पं० ४-५) । द्रव्योंका विविध वर्गीकरण - द्रव्यके मुख्य प्रकार दो हैं - जीव और अजीव । जीवद्रव्य चेतन है और 'बोधव्यापारमय है। पुद्गल आदि शेष अजीवद्रव्य अचेतन हैं । (प्र० २, ३५) ___मूर्त और अमूर्तके भेदसे द्रव्योंके दो भेद किये जा सकते हैं। जिन लक्षणों - चिह्नोंसे द्रव्य जाना जा सकता है, वह चिह्न उस द्रव्यके गुण कहलाते हैं। जो द्रव्य अमूर्त है, उसके गुण भी अमूर्त है, और जो द्रव्य मूर्त है उसके गुण भी मूर्त होते हैं। जो गुण इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये जा सकें वह मूर्त गुण कहलाते हैं। सिर्फ पुद्गलद्रव्यके ही गुण मूर्त हैं। परमाणुसे लेकर पृथ्वी तक पुद्गलद्रव्यमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श- यह चार गुण पाये जाते हैं । शब्द, पुद्गलका परिणाम - पर्याय है, गुण नहीं है। (प्र० २, ३८-४०) १. जिसका दूसरा विभाग न हो सके ऐसे आकाशके अंशको प्रदेश कहते हैं। जो द्रव्य ऐसे अनेक प्रदेशोंवाला है उसे अस्तिकाय कहते हैं। २. गुण उसे कहते हैं जिसका सद्भाव द्रव्यमें हमेशा पाया जाये। शब्द पुद्गलपर्याय है, गुण रूप नहीं। जब दो पुद्गलस्कन्ध आपसमें टकराते हैं तब शब्द उत्पन्न होता है । इसलिए वह पुद्गलका ही पर्याय है गुण नहीं । अन्य दार्शनिक शब्दको आकाशका गुण मानते हैं परन्तु जिन चीजोंमें परस्पर विरोध हो वे गुण-गुणी रूप नहीं हो सकते। आकाश, रूप, रस, गन्ध, स्पर्शसे रहित श्रमूर्तिक पदार्थ है किन्तु शब्द, कण्ठ, तालु आदिसे उत्पन्न होता है तथा पैदा होते समय ढोल झालर आदिको कपाता है, इसलिए वह मूर्तिक है । वह मूर्तिक कानको बहरा कर सकता है, मूर्तिक दीवाल भादिसे वापस

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