Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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अ अ [अ] 1. और, तथा। (भा. ५२) पढिओ अभव्वसेणो। 2. रहित। (स. १४,१११, प्रव. जे. ७१) अविसेसमसंजुत्तं। (स. १४) 3. नहीं, निषेध, प्रतिषेध। (निय. १४२, स. १६७, पंचा. १६३, भा. १०४) ण वसो अवसो। (निय. १४२) पं. अभाव | (भा. १०१, स. २३२) जो हवइ असंमूढो। (स. २३२) अइ अ [अति] 1. बहुत। (निय.२१,२४) अइथूल-थूल- थूलं। (निय.२१) 2. अतिशय, उत्कर्ष। (मो.२४) अइसोहण जो एणं। (मो.२४) -थूल वि [स्थूल] अधिक मोल। (निय.२२) -सुहुम वि [सूक्ष्म] अधिक सूक्ष्म। (निय.२४) अइसुहुमा इदि पवेति। -सोहण न [शोधन] अतिशय शुद्धि, विशिष्टशुद्धि।
(मो.२४) अइसोहण जो एणं। अइरेण अ [अचिरेण] शीघ्र, जल्दी। (द. ६,चा. ४०, भा. ७९)
पावइ अचिरेण सुहं । (चा. ४३) अइसय पुं [अतिशय] सर्वश्रेष्ठ, अति-उत्तम, आधिक्य, प्रमुखता, उत्कृष्टता, अत्यधिक, बहुत बड़ा। (प्रव. १३, द. २९, बो. ३१) अइसयमादसमुत्थं । (प्रव. १३) -गुण पुंन [गुण] सर्वश्रेष्ठ गुण, उत्कृष्टगुण, प्रमुख गुण। (बो.३१) चउतीस अइसयगुणा। (बो.३१) -वंत वि [वान् उत्तमतायुक्त, श्रेष्ठतासहित। (बो. ३८) अइसयवंतं सुपरिमलामो यं। (बो.३८) अइसयं (द्वि. ए. प्रव. १३) अइसएहिं (तृ. ब. द. २९) (हे.भिसो हि हिँ हिं-३/७)
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