________________
प्रस्तावना
सत्रह
वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गई पत्ते।
वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवलीभणियं ।।१।। इसमें कहा गया है कि मैं श्रुतकेवलीके द्वारा भणित समयप्राभृतको कहूँगा। यद्यपि 'सुयकेवलीभणिय' इस पदकी टीकामें श्री अमृतचंद्र स्वामीने कहा है -- 'अनादिनिधनश्रुतप्रकाशितत्त्वेन, निखिलार्थसाक्षात्कारिकेवलिप्रणीतत्वेन, श्रुतकेवलिभिः स्वयमनुभवद्भिरभिहितत्वेन च प्रमाणतामुपगतस्य।'
__ अर्थात् अनादिनिधन परमागम शब्द ब्रह्मद्वारा प्रकाशित होनेसे, तथा सब पदार्थोंके समूहका साक्षात् करनेवाले केवली भगवान् सर्वज्ञ देवके द्वारा प्रणीत होनेसे और स्वयं अनुभव करनेवाले श्रुतकेवलियोंके द्वारा कहे जानेसे जो प्रमाणताको प्राप्त है।
तो भी इस कथनसे स्पष्ट नहीं होता कि मैंने केवलीकी वाणी प्रत्यक्ष सुनी है अतः केवली इसके कर्ता हैं। यहाँ तो मूल कर्ताकी अपेक्षा केवलीका उल्लेख जान पड़ता है। जयसेनाचार्यने भी केवलीका साक्षात् कर्ताके रूपमें कोई उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने 'सुयकेवलीभणियं' की टीका इस प्रकार की है -- 'श्रुते परमागमे केवलिभिः सर्वज्ञैर्भणितं श्रुतकेवलिभणितं। अथवा श्रुतकेवलिभणितं गणधरकथितमिति।'
__ अर्थात् श्रुत- परमागममें केवली-सर्वज्ञ भगवान्के द्वारा कहा गया। अथवा श्रुतकेवली- गणधरके द्वारा कहा गया।
फिर भी देवसेन आदिके उल्लेख सर्वथा निराधार नहीं हो सकते। देवसेनने, आचार्यपरंपरासे जो चर्चाएँ चली आ रही थीं उन्हें दर्शनसारमें निबद्ध किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि कंदकंदके विदेहगमनकी चर्चा दर्शनसारकी रचनाके पहले भी प्रचलित रही होगी। कुंदकुंदाचार्यके नाम
___ पंचास्तिकायके टीकाकार जयसेनाचार्यने कुंदकुंद के पद्मनंदी आदि अपर नामोंका उल्लेख किया है। षट्प्राभृतके टीकाकार श्रुतसागरसूरिने पद्मनंदी, कुंदकुंदाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य और गृद्धपिच्छाचार्य इन पाँच नामोंका निर्देश किया है। नंदिसंघसे संबद्ध विजयनगरके शिलालेखमें भी जो लगभग १३८६ ई. का है, उक्त पाँच नाम बतलाये गये हैं। नंदिसंघकी पट्टावलीमें भी उक्त पाँच नाम निर्दिष्ट हैं। परंतु अन्य शिलालेखोंमें पद्मनंदी और कुंदकुंद अथवा कोंडकुंद इन दो नामोंका उल्लेख मिलता है। कुंदकुंदका जन्मस्थान
___ इंद्रनंदी आचार्यने पद्मनंदीको कुंडकुंदपुरका बतलाया है। इसीलिए श्रवणबेलगोलाके कितने ही शिलालेखोंमें उनका कोंडकुंद नाम लिखा है। श्री. पी. बी. देसाईने 'जैनिज्म इन साउथ इंडिया' में लिखा है कि गुंटकल रेल्वे स्टेशनसे लगभग ४ मीलपर कोनकुंडल नामका स्थान है जो अनंतपुर जिलेके गुटी तालुकेमें स्थित है। शिलालेखमें उसका प्राचीन नाम 'कोंडकुंदें मिलता है। यहाँके निवासी आज भी इसे 'कोंडकुंदि' कहते हैं। बहुत कुछ संभव है कि कुंदकुंदाचार्यका जन्मस्थान यही हो। कुंदकुंदके गुरु
संसारसे निःस्पृह वीतराग साधुओंके माता-पिताके नाम सुरक्षित रखने - लेखबद्ध करनेकी परंपरा प्रायः नहीं रही है। यही कारण है कि समस्त आचार्योंके माता-पिताविषयक इतिहासकी उपलब्धि प्रायः नहीं है। हाँ, उनके गुरुओंके नाम किसी न किसी रूपमें उपलब्ध होते हैं। पंचास्तिकायकी तात्पर्यवृत्तिमें जयसेनाचार्यने कुंदकुंदस्वामीके गुरुका नाम