Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 12
________________ मिलें और जैन धर्म तथा “खारवेळ" पर ग्रंथ की रचना करदें तो वह शांति प्रशांत हो जाएगी। तब संयोग से भाई जगदीशप्रसाद जी को श्री सदानंदजी अग्रवाल के बारे में ज्ञात हुआ। तब तक श्री अग्रवाल का 'सोनपुर इतिहास' दो खण्डों में प्रकाशित हो चुका था। जिस से हमें उनकी विद्वता का परिचय भी मिल चुका था। पत्राचार चला। भाई विनोदकुमार जी टिबरेवालजी और श्री जगदीशप्रसाद जी श्री अग्रवाल जी से वार्तालाप की व्यवस्था की। हमारी योजना के बारे में जानकर और हमारे अनुरोध से श्री अग्रवाल जी प्रसन्न हुए तथा तैयार होगये। पर उहोंने विनम्रता से बताया कि हिन्दी में लिखपाना उनके लिए कठिन होगा। आपही ने हमें ओडिआ और हिन्दी के ख्याति प्राप्त कवि- कथाकार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊके द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर भारत भारती 'सौहार्द सम्मान, से अलंकृत मर्मज्ञ विद्वन श्री श्रीनिवास जी उद्गाता से अनुरोध करने का आश्वसन दिया। सुखद आश्चर्य की बात तो यह है कि ये दोनों सज्जन अपने अपने कार्यों में लगगये। इस कार्य को प्रमुखता देकर अथक परिश्रम से समय पर पूरा भी करदिया। आरंभ ही से दोनों विद्वानों ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई परिश्रमिक लेंगे नहीं। यह बात दोनों की बड़ी उदारता का परिचय देती है, और उनके हृदय की विशालता अपने आप अधिक आभासित हो जाती है। केवल यही नहीं ग्रंथ की मुद्रण व्यवस्था, आवरण चित्र, प्रूफ आदि के संशोधन आदि आदि प्रकाशन संबंधी आवश्यकताओं को सुव्यवस्थित करने के लिए दोनें ने कटक ही में 'डेरा डाल दिया; यह हमारे लिए कतई संभव नहीं हो पाता। वे हमारे अतिथि थे। भाई राजेन्द्र प्रसाद ने उनके कटकप्रवास के समय आवश्यकता के प्रति ध्यान दिया और। पलभर के लिए भी साथ नहीं छोड़ा। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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