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यह कहा जा सकता है कि चेदि राजवंश भारत में अति प्राचीन काल से ही प्रतिष्ठित था। जैन हरिवंश के उल्लेख से यह स्पष्ट प्रतिपादित होता है कि विंध्याचल के समीपवर्ती क्षेत्र में अभिचंद्र ने चेदि राष्ट्र की स्थापना की थी और शुक्तिमती नदी के तट पर उनकी राजधानी थी जिसकी शुक्तिमतीपुर के नाम से ख्याति थी:
“बिन्ध्यपृष्ठेऽभिचंद्रेण चेदिराष्ट्रमाधिष्ठितम्। शुक्तिमत्यास्तटेऽध्यायि नाम्ना शुक्तिमतीपुरी॥"
ऐतिहासिक पार्जिटर ने यह शुक्तिमती नदी को मध्यप्रदेश में प्रवाहित केन नदी बताया है। उनके मतानुसार चेदि राष्ट्र यमुना नदी के दक्षिण में चंबल नदी की उपत्यका से करवी नदी की उपत्यका तक विस्तृत था। परंतु पार्जिटर का यह मत कदापि ग्राह्य नहीं हैं। क्योंकि चेदि राष्ट्र की राजधानी से दस योजन की दूरी पर कलिङ्ग की दुर्णिबित्थ- (दुर्णिविष्ट) नामकी एक ब्राह्मण बस्ती थी। अत: चेदि राष्ट्र और कलिङ्ग में भौगोलिक व्यवधान विशेष नहीं था यह बेस्सान्तर जातक से ज्ञात होता है।
शुक्तिमती आधुनिक ओडिशा के बलांगीर जिले में प्रवाहित 'शुकतेल' नदी है। इसी शुकतेल के तटवर्ती मेण्डा ग्राम के निकटस्थ लोकापडा ग्राम से इन पंक्तियों के लेखक ने एक प्राचीन जनबसति के अवशेषों का उद्धार करके यहीं से प्राप्त लांछित मुद्राओं।(Punch marked Silver Coin) को तीन वर्गों में विभाजित किया है। वे नंद, मौर्य और मौर्योत्तर कालीन हैं। भारतवर्ष की अन्यान्य जगहों से मिले लांछित मुद्राओं की भाँति इन मुद्राओं के आकार और गठन में विषमता पायी जाती है। मुद्राओं में वृक्ष, भिन्न-भिन्न जीव, षड़ार-चक्र, सूर्य, पहाड़, पहाड़ पर अर्धचंद्र, तोरण, घेरे के बीच वृक्ष, विभिन्न धर्म संबंधी प्रतीक चिन्ह पाए जाते हैं। इसी जगह से पत्थर की मालाओं की कंठियां और एक पदक भी मिला हैं। ये सब कंठियां
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