Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 47
________________ गिरि “गोरध गिरि" के नाम से खोदित हुआ है, यह उल्लेखनीय कलिंग सेना के आक्रमण के समय जब मगध राजगृह के अधिवासी संतप्त थे तब यवनों ने मथुरा पर अधिकार पा लिया था और वे मगध की ओर बढ़ने की सामरिक तैयारियां कर रहे थे। पर खारवेळ के विजय अभियान के समाचार पाकर ग्रीक राजा [नाम अज्ञात है] आतंकित होकर मथुरा की ओर पलायन कर गये। खारवेळ ने मगध के राजगृह पर अधिकार से जैनक्षेत्र मधुरा को यवनों के अधिकार से मुक्त करना अत्यावश्यक माना और राजगृह छोड़ कर मथुरा के लिये प्रस्थान किया। कलिंग सेनाने यवनों को विताडित किया और तत्कालीन जैनक्षेत्र मथुरा को खारवेळ के द्वारा सुरक्षा मिली। उपरोक्त सामरिक अभियान के कारण न केवल खारवेल की अजेय शक्ति और समर्थता परिप्रकाशित होती है, अपितु धर्मरक्षा के प्रति उनका प्रगाढ अनुराग भी प्रतिविंबित होता है। इससे उन्हें ऐतिहासिक महनीयता भी प्राप्त हुई है। कलिंग प्रत्यावर्तन के समय वे अपने साथ मथुरा से जैनधर्म के पवित्र वृक्ष कल्पवट की एक शाखा को साथ लाये थे। संभवत: वही जैनतीर्थ मथुरा को यवनों से मुक्त करने का महत्वपूर्ण धार्मिक निदर्शन था। वह पल्लवपूर्ण पवित्र शाखा को चतुरंग सेना की विशाल शोभायात्रा में राजधानी कलिंग नगरी को लायी गयी थी। राजधानी के प्रत्येक घरों में विजयलब्ध धन का वितरण हआ था और राजकीय उत्सव मनाया गया था। उसी विजय की स्मारकी के रूप में खारवेळ ने अपने राजत्व के नौवें वर्ष में कलिंग नगरी में महाविजय प्रासाद का निर्माण किया था। उस निर्माण कार्य के लिये अड़तीस लाख मुद्राओं का व्यय हुआ था। राजत्व के दसवें वर्ष में खारवेळ ने फिर एक बार उत्तरभारत [हाथीगुम्फा अभिलेख में “भरधवस" उल्लिखित हुआ है] की और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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