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वह भाषा भी अज्ञात है, अत: पाठोद्धार भी संभव नहीं हो पाया है। चाहे जो भी हो ब्राह्मी को ओड़िशा की प्राचीनतम लिपि के रूप में प्रतिपादित करने का प्रयास ही हास्यास्पद है, यह निश्चित . रूप से कहा जा सकता है।
लगभग एक सौ वर्षों तक अनेक विद्वानों ने खारवेळ के हाथीगुम्पा अभिलेख का पाठोद्धार के लिये हर दिशा से अथक
श्रम किये हैं। इसके विवरण इसी ग्रंथ के द्वितीय परिच्छेद में है। .. अब अभिलेख की लिपि और भाषा के संक्षिप्त विवरण देना और
उस पर विचार करना आवश्यक है।
महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय यह है कि भारतवर्ष में विभिन्न प्रांतों से जितने भी अशोक कालीन ब्राह्मी अभिलेख आविष्कृत हुए हैं, सब की लिपि और भाषा समान है। उसमें प्रादेशिक भेद की तलाश करना निरर्थक है। उसकी भाषा को मागधी प्राकृत और लिपि को अशोक कालीन ब्राह्मी (Ashokan Brahmi)के नाम से नामित किया गया है। अपने साम्राज्य का एकत्रीकरण के उद्देश्य से अशोक ने अपने अभिलेख में समान भाषा और लिपि का प्रयोग किया था।
स्वाधीन चेता सम्राट खारवेळ कलिंग की संतान थे। कलिंग की राजनैतिक परंपरा का पृष्ठपोषक तथा कलिंग संस्कृति के पूजक थे। अत: सबसे पहले उन्ही के अभिलेखों में कलिंग की लिपि
और भाषा को स्थान प्राप्त हुआ। उन अभिलेखों की लिपि को परवर्ती ब्राह्मी लिपि कहना समीचीन होगा।
डॉ.राजगुरु ने अपनी “ओड़िशा लिपिर क्रम विकाश' पुस्तक में प्रदत्त प्रथम और द्वितीय चित्र फलकों में क्रमश: अशोक और
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