Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 106
________________ अब इस प्रश्न का उठाया जाना उचित लगता है कि ओडू प्राकृत की भांति एक उन्नत भाषा को भरत ने क्यों ओडू विभाषा के रूप में अभिहित किया है! इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि द्रामिळ या द्राविड़ भाषा को भी उन्होंने विभाषा कहा है यद्यपि यह भाषा भी अन्नत और प्राचीन है। अतः "विभाषा" के कारण “ अनुन्नत भाषा" कहा नहीं जा सकता। क्यों कि जो क्षेत्र आर्य अध्युषित होकर नहीं थे उन क्षेत्रों की भाषा को नाट्यशास्त्र में "विभाषा" कहा गया है। हाथीगुम्फा अभिलेख से उस समय के लेखन, रूप, गणना, आचरण विधि, गांधर्व वेद आदि की शिक्षा कलिंग में प्रचलित थी, इसका स्पष्ट प्रमाण मिलता है। इसी ग्रंथ में हम उनके विवरण दे चुके हैं। खारवेळ के खण्ड़गिरि - उदयगिरि अभिलेख और शिलांकन आज भी कलिंग की सुउन्नत ऐतिह्यमय सांस्कृतिक परंपरा का श्रेष्ठ निदर्शन के रूप में विद्यमान है। अतः खारवेळ - कालीन कलिंग को असभ्य और अशिक्षित बतलाने का प्रयास अशोभनीय होगा तथा उसे इतिहास को विभ्रांत करने का शैक्षिक अपराध ही कहा जाएगा । खारवेळ के हाथीगुम्फा शिलालेख की भाषा कलिंग की उन्नत निजस्व भाषा है और उसका लेखन कार्य कलिंग-संतान के द्वारा ही संपन्न हुआ था, इस कथन के खण्ड़न के लिये किसी भी ऐतिहासिक तर्क प्रस्तुत किया नहीं जा सकता । हाथीगुम्फा अभिलेख की भाषा की अनेक विशेषताएं हैं। विद्वानों ने इसमें अंतर्निहित काव्यिक तथा प्रभावशाली गद्यशैली के कारण समग्र भारतवर्ष के प्राचीन अभिलेखों में विशिष्ट स्थान दिया है। निचे प्रयोग किये गये कुछेक प्राकृत शब्द तथा संस्कृत प्रतिशब्द पाठकों की जानकारी के लिये दे रहे हैं: Jain Education International ८८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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