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कलिंग के अतिरिक्त कोई और क्षेत्र हो ही नहीं सकता। हरमन ओल्डनवर्ग (H.Oldenburg) ने अपनी तर्कों की पुष्टी खारवेळ के हाथीगुम्फा अभिलेख के आधार पर की है। उनके मतानुसार इस अभिलेख की भाषा शास्त्रीय पालि की अत्यंत निकटवर्ती भाषा है और तब यह अभिलेख कलिंग के जन -साधारण की भाषा में ही लिखा गया था। ओल्डनवर्ग के वक्तव्य के पश्चात बौद्ध पण्डित कार्ण (.kern)ने पालि को कलिंग और आंध्र की भाषाके रूप में प्रतिपादित किया है। उलनर ने (Woolner) कहा “पालि मगध की भाषा नहीं है। फिरभी मैं इसे कलिंग की भाषा मानता हूं।" भण्डारकर ने अपने करमाइकल संभाषण में कहा -" यह सच है कि पालि कलिंग की भाषा है, पर महाराष्ट्र में भी यह भाषा प्रचलित थी।
उपरोक्त आलोचनाओं से यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाता है कि “ शास्त्रीय पालि भाषा के उद्भव और विकास दोनों के लिये कलिंग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। असमीया पंड़ित वेणिमाधव बडुआ ओल्डनवर्ग के तर्कों का समर्थन तो करते हैं पर कलिंग को पालि की भूमि के रूप में स्वीकारते नहीं हैं। वे खण्डगिरि
और उदयगिरि के अभिलेखों की भाषा को पालि मानने को तैयार हैं पर उसे कलिंग की लोक भाषा मानने को कुण्ठित हैं। उनके मतानुसार कलिंग में जनता असभ्य और अशिक्षित थी और उस जैसे एक अनुन्नत क्षेत्र में पालिका प्रचलन बिलकुल संभव नहीं हैं। वे फिर कहते हैं कि कलिंग के किसी व्यक्ति ने हाथीगुम्फा
अभिलेख लिखा नहीं है। कलिंग में किसी लेखक को न पाकर इस कार्य के लिये गुजरात से एक जैन सन्यासी को बुलाया गयाथा। “मझिझम निकाय' ग्रंथ से एक उदाहरण देकर उन्होंने प्राचीन कलिंग और उत्कल के लोगों को अशिक्षित बताने का अयथार्थ प्रयास
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