Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ था, छत के ऊपर शिखर था और प्राय: सभी घरों के उद्यान तथा पत्थर से बनी चारदीवारियां भी थीं। वासभवनों में पृथुलाकार स्तंभ, अलिंद, तोरण, प्रशस्त बरामदा और बड़े बड़े झरोखे भी थे। (चित्र नं.७) उदयगिरि खण्डगिरि में खोदित चित्रावलियों से उस समय के लोगों के वस्त्र, आभूषण तथा सौंदर्य-श्रृंगार के संबंध में भी धारणा स्पष्ट हो जाती है। तब नारी मुरूष दोनों अलंकारप्रिय थे। कुण्डल, कर्णफूल, कंगन, बाला स्त्री-पुरूषों के साधारण अलंकार थे। नारियां अलग से कटिमेखला, नूपुर, पदकंकण, सीमंतमणि आदि पहना करती थीं। इस पुस्तक में यथासंभव उन आभूषणों के रेखाचित्र दिए गये हैं (चित्र नं. ८-९)। नारी और पुरूष दोनों झीने वस्त्र पहना करते थे। पर दोनों के ऊर्ध्व भाग पर वस्त्राच्छादन साधारणतया नहीं रहता था। यहां तक कि नारियां भी कमर के ऊपर कोई पोशाक पहनती नहीं थीं। केवल सौंदर्य विन्यास के लिए नर्तकियां मस्तक पर अवगुंठन रखती थीं, पर वह ललाट तक नहीं, केवल जुड़े के ऊपरी भाग तक को आवृत्त कर रखता था। यदाकदा उत्सव काल में कहीं कहीं-उत्तरीय धारण के चित्र भी पाए गये हैं। पुरूष मस्तक पर पगड़ी बांधा करते थे। धनिक वर्ग उन पगड़ियों को अलंकारों से भी सजाया करते थे। उस समय गृहोपकरण तथा बर्तन आदि भी रूचिसंपन्न थे। राणीगुम्फा और गणेशगुम्फा के चित्रों में सुगठित थाल, लोटा, कलस, तथा अन्यान्य पात्रों के चित्र भी हैं। खारवेळ की राजधानी के रूप में चिन्हित भुवनेश्वर के समीप शिशुपालगड़ में प्रत्नतात्विक उत्खनन के समय रोम-निर्मित चित्र-शोभित मृण्मय-पात्र मिले हैं। पोण्डिचेरी के पास एरिकामेडु से भी वैसे ही मृदभाण्ड, मद्यपात्र, मद्याधार आदि आदि प्राप्त हुए हैं। इस भाँति के बर्तन और पात्र रोम से आयात हआ करते थे। उस समय रोम के साथ कलिंग का व्यापारिक सुसंबंध बन चुका था। मद्रास म्यूजियम में संरक्षित रोमन मुद्राएं पूर्व भारतीय समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों के साथ ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136