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अरहत निसीदिया समीपे पभारे वराकर समुथापिताहि अनेक योजनाहि ताहि पनतिसाहि सतसहसेहि सिलाहि सिहपथ रानिस [भलासेहि] पंक्ति -१६
....पटलिक चतरे च वेडुरिय गभे थंभे पटिथापयति पानतरिय सतसहसेहि [u] मुरिय काल वोछिनं च चोयठि अंग संतिकं तुरयिं उपादयति [1] खेमराजा स वधराजा स भिखुराजा धमराजा पसंतो सुनंतो अनुभवंतो कलणानि
पंक्ति -१७
गुणविसेस कुसलो सवपासंड पूजको सवदेवायतन संकार कारको अपतिहत चक वाहन बलो चकधरो गुतचको पवत चको राजसि वसुकुल विनिसितो महा विजयो राजाखारवेल सिरि [1]
भावानुवाद
पंक्ति -१-२: अर्हतों को नमस्कार। सभी सिद्धों को नमस्कार। आर्य महामेघवाहन महाराजा श्री खारवेल, जो चेतराज के वंश के गौरववर्धक, सभी शुभ लक्षणों के आधार स्वरूप हैं तथा जिनके गुणराशि चतुर्दिशाओं में परिव्याप्त है, उन्हीं सुंदर पिंगल वर्ण वपुधारी कलिङ्गाधिपति ने पंद्रह वर्षों तक कुमार सुलभ क्रीडाएं की थी।
पंक्ति -२-३ : तत्पश्चात लेख, रूप, गणना, व्यवहार, विधि आदि विषयों के अध्ययन से सभी विद्याओं के पारंगत हुए और नौ वर्षों तक युवराज के रूप में राज्य का शासन किया। चतुर्विंशति वर्ष की आयु प्राप्त हो वे कलिङ्ग राजवंश के तृतीय पुरूष के रूपमें सिंहासन पर वेन्य के समान अभिषिक्त हुए।
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