Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 38
________________ को उद्यत हुआ तो उस वीरबाला ने अपने मृत पिता का अस्त्र लेकर उसका सामना करने लगी। पर वह शीघ्र ही पराजित होगयी और बंदी बनाली गयी । सौभाग्य से उस समय महाराजा खारवेळ आखेट के अरण्य में सेना सहित उपस्थित थे। अकस्मात सम्राट् के के कोलाहल से वनभूमि मुखरित होजाने के कारण उस ने राजकन्या को अरण्य में अकेली छोड़ कर भय से पलायन किया । उसी समय खारवेळ के द्वारा शराहत होकर एक मृग किसी वृक्ष के नीचे आ गिरा । सम्राट अश्वपृष्ठ से अवतरित हुए और उस आहत मृग की ओर अग्रसर हुए। पास आकर उन्होंने देखा, वृक्ष की शाखा पर एक तरुणी बैठी आश्रय की प्रार्थना कर रही है । उसका परिचय पाकर सम्राट ने उसे अभय प्रदान किया और उसे आदर सहित साथ ले आए। सिंहपथ राजकन्या का उद्धारकर ले आने के उपलक्ष्य में कलिङ्ग नगरी में नृत्य गायन और विविध उत्सवों के आयोजन हुए । उत्कीर्णित चित्र में स्वयं सम्राट उस नवागता राजकन्या को पास बिठा कर नृत्य गायन का उपभोग करते दिखाए गये हैं। चित्रावली के सर्वशेष अंश में उसी राजकन्या के साथ विवाह कर प्रमोद - उद्यान में उन दोनों का साथ साथ विहार के दृश्य चित्रित हैं। राणीगुम्फा की निचली सतह की दायीं और खोदित चित्रावली में सम्राट खारवेळ दोनों रानियों के बीच बैठे हुए दर्शाए गये हैं। कई चित्रों से यही ज्ञात होता है कि खारवेळ के साथ दोनों रानियां भिन्न—भिन्न अवसरों पर जनसाधारण के सम्मुख उपस्थित हुआ करती थीं । Jain Education International लिए उसी सेना - समूह लंपट पुरुष २० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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