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शासन की नींव डाली हो । महामेघवाहन कलिंग में चेदि राजवंश के प्रतिष्ठाता थे । फलस्वरूप कलिंग मगध से स्वतंत्र हुआ और उसके गौरवमय इतिहास में नये नये अध्याय जुड़गये । खारवेळ, कलिंग में अपने वंश के तृतीय राजा थे, यह उनके हाथीगुम्फा शिलालेख से स्पष्ट प्रमाणित होता है (ततिय पुरिस युगे) । सभी ऐतिहासिकों ने महामेघवाहन को कलिंग का प्रथम चेदि राजा और खारवेळ को तृतीय चेदि राजा माना है। पर द्वितीय चेदि राजा के बारे में शिलालेख मौन है, यही उन्होंने दर्शाया है । हमारी राय में हाथीगुम्फा शिलालेख की आद्यपंक्ति में उल्लिखित चेतराज खारवेळ के पिता तथा द्वितीय चेदि राजा हैं। हाथीगुम्फा शिलालेख में खारवेळ के शासन काल के तेरह वर्षो के क्रमिक विवरण के साथ साथ उनके पूर्वजों की सूचना भी है। इस स्थिति में उनके पिता का विस्मृत हो जाना असंभव सा लगता है। फिर भी खारवेळ के पिता चेतराज के बारे में विस्तृत विवरण देने को अबतक कोई ऐतिहासिक तथ्य या आधार मिला नहीं है।
यहाँ यह विचारणीय है कि खारवेळ और कुदेपसिरि दोनों ने अभिलेखों में अपने को महामेघवाहनवंशी के रूपमें परिचित कराया हैं। प्राचीन भारत के अनेक राजवंशों के नाम के साथ " वाहन" शब्द संलग्न है; उदाहरणतः दधिवाहन, सालिवाहन, मणिवाहन, नरवाहन, सातवाहन आदि । जैसे सातवाहन वंशी सिमुक के पूर्वज सातवाहन के नामानुसार वंश नामित हुआ है वैसे ही चेदि राजवंश का महामेघवाहन के नामानुसार नामित होना अधिक समीचीन लगता है। पर यह निश्चित है कि इस राजवंश का नाम कभी भी "ऐर" नहीं था । अभिलेखों में खारवेळ और कुदेपसिरि दोनों ने अपने को ऐर के रूप में प्रकाशित किया है। परिणामस्वरूप अनेक विद्वानों ने उन्हें ऐर वंशी शासक के रूपमें प्रतिपादित किया है तथा इस वंश की प्रतिष्ठा किसी ऐर नामक राजा के द्वारा हुई थी, ऐसा बतलाया है। यहां तक कि श्री काशीप्रसाद जयस्वाल ने उन्हें पुराण- वर्णित "ऐल" वंश में शामिल कर लिया है।
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