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है कि सबसे पहले इंद्रजी ने ही “खारवेळ" का नामोल्लेख किया है। लिपि-विज्ञानी व्यूलर (Bihler) ने ई १८९५ और १८९८ में इंद्रजी के पाठ में कतिपय संशोधन परिवर्तन किये। ई १९०६ में व्लॉक साहब (J.B. Block) ने इस अभिलेख की एक प्रतिच्छवि स्याही से बनाकर सुपण्डित कीलहॉर्न (Keilhorn) को प्रदान किया था। इसे J.H. Fleet के पास विलायत भेजागया और फ्लीट् साहब ने ई १९१० में इसका संशोधित पाठोद्धार कर रॉयल. एसिआटिक (Royal Asiatic) पत्रिका में प्रकाशित करवाया था। इसी पत्रिका में ल्यूदर (H. Luder) साहब की टिप्पणी भी प्रकाशित हुई थी। इसके पश्चात विशिष्ट ऐतिहासिक टामस् ने (F.W.Thomas) Annual Report of the Archaeological Survey, India, 1922-23 में और स्टेन कोनो ने (Sten Konow- Acta Orientalia Vol. I) इस अभिलेख पर नये सिरे से प्रकाश डाल कर इसके ऐतिहासिक महत्व का प्रतिपादन किया था। ऐतिहासिक राखालदास बेनर्जी स्वयं ई १९१३ में उदयगिरि आए थे और हाथीगुम्फा अभिलेख का एक फोटो चित्र लिया था। उसी - फोटोचित्र का प्रकाशन काशी प्रसाद जयस्वाल के द्वारा ई १९२७ में बिहार- ओडिशा रिसर्च सोसाइटी जर्नल में हुआ था। उसी वर्ष जयस्वाल भी उदयगिरि आए थे और स्वयं शिलालेख का अध्ययन अनुशीलन करने का अवसर पाकर अपने पाठ में कुछेक संशोधन कर पाए. थे। फिर १९१९ ई. में जयस्वाल और बेनर्जी दोनों एक साथ आए और विभिन्न दृष्टिकोण से शिलालेख की समीक्षा की थी। उनके वापस जाने के पश्चात पटना म्यूजियम के लिये इसी अभिलेख का प्लास्टर कास्ट बनाया गया और कुछेक फोटो भी लिए गये थे। राखालदास और जयस्वाल ने हाथीगुम्फा अभिलेख का पाठोद्धार करने के लिए अक्लांत परिश्रम किया है। वे दोनों फिरसे सन् १९२४ में उदयगिरि आकर अभिलेख के विभिन्न अंशों का पुनः निरीक्षण किया था। अकेले जयस्वाल ने सन् १९२७ में बिहार-ओडिशा रिसर्च सोसाइटी जर्नल में और बाद में १९२९ में बेनर्जी के साथ मिल कर एपीग्राफिया इण्डिका में इसी अभिलेख
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