Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 11
________________ आत्मकथन स्वप्न साकार हुआ, इस अनुभूति के आते ही जो अपार आनन्द मिलता है वह अनिर्वचनीय है। कुछ वैसी ही दिव्य हर्षानुभूति हो रही है हमें, 'खारवेळ' ग्रन्थ के प्रकाशन के अवसर पर । स्व. पूज्य पिताजी श्री निहाल चन्द जी अग्रवाल जैन थे । आप श्री खण्डगिरि, श्री उदयगिरि सिद्धक्षेत्र तथा श्री कटक दिगंबर जैन मंदिर के क्षेत्र - मंन्त्री थे। दीर्घकाल तक आपने क्षेत्र की सेवा की। अपनी शारीरिक असमर्थता के कारण प्रत्यक्ष दायित्व से मुक्त होने की इच्छा से श्री बंगाल, बिहार, ओडिशा दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सामने अपने विचार रखे तो कमिटीने मेरा नाम प्रस्तावित करदिया । जब क्षेत्र के साथ संपर्क सूत्र सुदृढ हुआ, जिज्ञासा बढ़ी तो चक्रवर्ती कलिंग सम्राट् खारवेळ के बारे में भी अवगत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके शासन काल में कलिंग जैन धर्म की उर्वर भूमि थी । उन्होने मगध विजय कर कालिंगजिन की प्रतिमा वापस लाकर कलिंग में उसकी प्रतिष्ठा करवायी। आपके दिग्विजय राज्य विस्तार के लिए नहीं था; वरन धार्मिक संरक्षण की भावना के प्रति समर्पित था । महारानी भी वैसी ही थीं जो संसारिक भोग विलास के बदले आत्म-कल्याण के प्रति अधिक अनुरक्त थीं । सम्राट् और महारानी दोनोंने दिगंबरी दीक्षा लेली । साधु और साध्वियों को एक साथ तपसाधना में असुबिधा के बारे में मुनिराज से ज्ञात होकर महाराजने तत्काल राणीगुम्फा - खनन की योजना बनायी आदि आदि गाथाएं सुनकर मन को बड़ी शांति मिली थी । और तब से अब तक मन में यह इच्छा बलवती होती गयी, मन में निरंतर यह विचार उमडता रहा कि कोई इतिहासवेत्ता महानुभव **** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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