Book Title: Kharvel
Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 13
________________ पूज्य पिताजी व्यापार के क्षेत्र में एक सम्मानित व्यक्ति थे। उनके पास स्व. द्वारकाप्रसाद जी क्याल का सदा उठना बैठना था। बे स्वर्गीय पिताजी से एक धर्मशाला बनवा देने का आग्रह किया करते थे। यह बात पूज्य पिताजी के मानस में भी समागयी। श्री दिगम्बर जैन मंन्दिर से लग कर ही मंदिर की जमीन थी। इसपर श्री दिगम्बर जैन भवन बनवाने का काम आरम्भ हो गया। निचेका हिस्सा बनगया पर उससे पिताजी को संतोष नहीं हुआ। वे चाहते थे कि भवन की एक और मंजिल भी बनजाए। तब वे अस्वस्थ रहने लगे। तब उनसे यह पूछा भी गया था और वे अपनी उस एक ही इच्छा को प्रकाशित करते रहे। उस समय स्व. पूज्य पुसराज जी, पूज्य फतेचन्द जी एवं स्व पूज्य सागरमलजी थे। पिताजी की इच्छा थी और निर्माण के लिए इन सब महानुभवों की सम्मति थी। पूजनीया स्व. माताजी श्रीमती लक्ष्मी देवी की भी पति अनुगामिनी इच्छा थी कि भवन की ऊपरी मंजिल बन जाए। बताती रहीं कि उनकी इच्छा से मेरी इच्छा कहीं अलग हो सकती है? पूज्य पिताजी का दिनांक १४ जुलाई १९७० को स्वर्गवास हुआ और उसके ढाई महीने के बाद पूजनीया माताजी भी दिनांक २ अक्टूबर १९७० को स्वर्ग सिधारगयीं। उनका आशीर्वाद हमारे लिए निरंतर है। उन्हें हमारे इस कार्य के लिए संतोष होगा। पर उनके रहते बाकी कार्यों की भाँति यह भी हो जाता तो हमें और भी अधिक आनन्द मिला होता। अब इस ग्रंथ के प्रकाशन के बारे में - श्री दिगम्बर जैन समाज, कटक के जो भी भाई बहन एक समारोह में थे, उनके सामने इस ग्रंथ के प्रकाशन की बात रखीगयी तो सब पुलकित हो उठे। सबने चाहा कि यह कार्य सुन्दर ढंग से शीघ्र ही हो। यही उन सब की इच्छा है। जो सद्विचार सब के मन में बर्षों से था उसे ही आज सार्थकता प्राप्त हुई है, इस ग्रंथ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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