Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 5
________________ प्रकाशकीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में प्राचीन समय में ८४ गच्छों की मान्यता रही है। उन प्राचीन ८४ गच्छों में से वर्तमान में ४ ही गच्छ विद्यमान है:- खरतरगच्छ, अचलगच्छ, तपागच्छ और पार्श्वचन्द्र गच्छ। ये चारों ही गच्छ वर्तमान में भी देदीप्यमान हैं। प्राकृत भारती के प्रारम्भ से ही यह भावना रही है कि इन गच्छों का प्रामाणिक इतिहास प्रकाशित हो। इसी को ध्यान में रखकर तपागच्छ का इतिहास और अंचलगच्छ का इतिहास हम प्रकाशित कर चुके हैं । हमारी भावना थी कि खरतरगच्छ का भी प्रामाणिक इतिहास शीघ्र ही प्रकाशित हो । साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं के प्रौढ़ विद्वान् हैं । भारत के प्रसिद्ध इने-गिने प्राकृत भाषा के विद्वानों में इनकी गणना की जाती है । धुरन्धर जैनाचार्य भी समय-समय पर इनसे परामर्श लेते रहते हैं । प्राकृत भारती अकादमी के स्थापना काल से ही ये इसके निदेशक पद को सुशोभित करते रहे हैं। खरतरगच्छ के इतिहास, पुरातत्त्व और साहित्य के ये विशिष्ट विद्वान् माने जाते हैं। साहित्य मनीषी स्वर्गीय श्री अगरचन्दजी नाहटा और श्री भँवरलालजी नाहटा के पश्चात् इनकी कोटि का विद्वान् और कोई नहीं है। श्री विनयसागरजी से हमने अनुरोध किया कि आप इतिहास, पुरातत्त्व और साहित्य के विद्वान् हैं। अतः खरतरगच्छ का इतिहास आप लिखें। इन्होंने भी सहर्ष स्वीकार किया और अपनी ६२ वर्षों की चिरसंचित अभिलाषा को पूर्ण करने की दृष्टि से इस कार्य को हाथ में लिया । ६ दशाब्दियों से इस सम्बन्ध में जो भी इन्होंने संग्रह एवं संकलन किया था उसको मूर्त रूप देना प्रारम्भ किया। इस इतिहास को इन्होंने तीन भागों में विभक्त किया है: १. खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास :- पुरातन पट्टावलियाँ, ग्रन्थ प्रशस्तियाँ और लेखन प्रशस्तियों के आधार पर यह इतिहास लिखा गया है। इसमें खरतरगच्छ के उद्भव से लेकर मूल परम्परा, १० शाखाएँ, ४ उप शाखाएँ, संविग्न परम्परा के तीनों समुदाय और वर्तमान में विद्यमान समस्त साधु-साध्वियों का प्रामाणिक इतिहास दिया गया है। शोधार्थियों के लिए इसमें ४ परिशिष्ट भी दिए गए हैं। इस इतिहास की अन्य गच्छ के धुरन्धर आचार्यों, विद्वानों, एवं जैनेतर विद्वानों ने भी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। २. खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रहः- सम्माननीय आचार्य श्रीबुद्धिसागर सूरिजी श्रीविजयधर्मसूरिजी, पद्मश्री मुनि जिनविजयजी, मुनिश्री जयन्तविजयजी, श्री पूरणचन्दजी नाहर एवं श्री अगरचन्दजी भँवरलालजी नाहटा आदि पुरातात्त्विक विद्वानों द्वारा प्रकाशित अभिलेख संग्रहों के आधार पर तथा स्वयं के संग्रहीत अभिलेखों के आधार पर २७६० अभिलेखों का संग्रह इसमें किया गया है। भारत के समस्त प्रदेशों के प्रकाशित लेखों में से खरतरगच्छ के प्रतिष्ठित लेखों का इसमें संकलन है। दादाबाड़ियों के लेखों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। इसकी भी पुरातात्त्विक विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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