Book Title: Kashaypahud Sutra Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ रागादि शत्रुओं को नहीं जीत सकता है। रागादिशत्रुओं को जीतने में श्रागम का प्रेम तथा अभ्यास महान हितकारी है। प्राचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णप्ति में लिखा है, कि आगम के अभ्यास द्वारा अनेक लाभ होते हैं। "अरणास्स विणासो"-अज्ञान का विनाश होता है, "पाण-दिवायरस्स उप्पत्ती"-ज्ञान सूर्य की उत्पत्ति होती है तथा "पडिसमय-मसंखेज्जगुणसेदि-कम्माणिज्जर -प्रति समय असं ख्यात गुणमि रूप कर्मों की निर्जरा होती है। प्रवचन यत्सलता में जिनेन्द्र भगवान के आराधकों के प्रति हार्दिक स्नेह का सद्भाव प्रावश्यक है तथा प्रवचन भक्ति में प्रकृष्ट वचन रूप प्रवचन अर्थात् सर्वशवाणी के प्रति विनय तथा प्रादर का सद्भात रहता है । अकलंक स्वामी के ये शब्द विशेष प्रकाश डालते हैं, "मईदाचार्येषु बहुश्रु तेषु प्रवचने यामारविशुद्धियुजिग्नोसोहिासागर महाराज पृ. २७, अ. ६, सू. २५) महन्त भगवान, प्राचार्य परमेष्ठी, बहुश्रुत अर्थात् महान ज्ञानी व्यक्ति तथा जिनागम के प्रति भावविशुद्धि युक्त अनुराग भक्ति है। प्रवचन में भावों की निर्मलता युक्त अनुराग को प्रवचन भक्ति कहा है। भक्ति पूज्य के प्रति की जाती है। वात्सल्य में पारस्परिक प्रेम एवं हार्दिक स्नेह का सद्भाव पाया जाता है। गुणधर आचार्य ने प्रवचन वात्सल्य भावना से प्रेरित हो जिनेन्द्रमत्तों के कल्यासार्थ इस ग्रंथ की रचना की। वीरसेन स्वामी का कथन है कि कषाय पाहुड संबंधी सुत्र गाथाएँ श्राचार्य परंपरा से आती हुई प्राचार्य आयमच तथा नागहस्ती प्राचार्य को प्राप्त हुई-"पुरमो ताथो चेव सुत्त-गाहाम्रो पाइरियपरंपराए आगच्छमाणीनो अज्ञमंखु -~णागहथीण पत्ताओ।" ( जयधवला पृ. ८%) उन गाथाओं पर प्रवचन-वत्सल यतिवृषभ भट्टारक ने चूपिसूत्रों की रचना की । “जयिषसहमहारपण पवयरम-वच्छ लेण चुरिगसुत्तं कयं ।" उन चूर्णिसूत्रों का प्रमाण छह हजार श्लोक है। इंद्रनंदि आचार्य ने कहा है: "तेन यत्तिपतिना रचितानि षट्सहस्र-ग्रंथान्यथ चुणिसूत्राणि" ( श्लोक १५६)। उन सूत्रों पर साठ हजार श्लोक प्रमास जयधवला टीका आचार्य वीरसेन तथा जिनसेन ने बनाई | ब्रह्म हेमचंद्र ने श्रुतस्कंध में लिखा है :"मत्तरि सहस्सधवनो जयधवलो सदिसहस्स बोधव्वो। महबंध चालीसं सिद्धतत्तयं अहं वन्दे ।" धवलग्रंथ सत्तर सहस्त्र प्रमाण है। जयधवल साठ हजार प्रमाण है। महावंध चालीस हजार प्रमाण है। जिन सनाचार्य ने जयधयला की प्रस्ति में कहा है, "टीका श्रीजयचिह्नितोमधवला सूत्रार्थसंघोतिनी"-यह जय चिह युक्त महान धवल टीका सूत्रों के अर्थों पर भली प्रकार प्रकाश डालती है।Page Navigation
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