Book Title: Kashaypahud Sutra Author(s): Gundharacharya, Sumeruchand Diwakar Shastri Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ पूर्व हुआ था । अतः दिगम्बर परंपरा के अनुसार गुणवर आचार्य को ईसा की प्रथम शताब्दी में मानना होगा। ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व वीर• निर्वाण की प्रचलित मान्यता के प्रकाश में गुणधर स्वामी का समय १४४ ईसवी सन अर्थात् दूसरी शताब्दी कहा जायेगा। ग्रंथ निर्माण का कारण-गुणधर स्वामी के चित्त में यह विचार उत्पन्न हुआ, कि मेरे पश्चात् इस परमागम रूप कषायपाहुद्ध ग्रंथ का लोप हो जायगा, अतः इसका संरक्षण करना चाहिए। इस श्रुत सरक्षस की समुञ्चल मावना में प्रेरित होकर महाज्ञानी गुणधर भट्टारक ने इस रचना की ओर प्रवृत्ति की। जयधवला टीका में वीरसेन स्वामी ने कहा है, "थंग और पूर्वो का एक देश ही प्राचार्य परंपरा से प्राकर गुणधर आचार्य को प्रामासिकपुनः बाचाबा सारासार पाने महाराज दसवी वस्तु तृतीय कपायप्राभृत रूपी महासमुद्र के पारगामी श्री गुणधर भट्टारक ने-“गंवोच्छेद भएण पवयण्त्रच्छल-परवसीकहियपण एवं पेज्जदोस-पाहुई सोलसपदसहस्स पमाणं होत असीदिसदमेतमाहादि उवधारिद" (पृष्ठ ८७, भाग १)- जिनका हृदय प्रबंधन के वात्सल्य से भरा हुअा था, सोलह सहस्त्र पद प्रमाण इस पेज्जदोस पाहुड शास्त्र का विच्छेद हो जाने के भयसे केवल एक सौ अस्सी गाथाओं के द्वारा उपसंहार क्रिया । यहाँ पद का प्रमाण मध्यम पद जानना चाहिए | आचाया इंदनंदि ने लिखा है: अधिकाशीत्या युक्तं शतं च मूलसूत्रगाथानाम् । विवरणमाधानां च व्यधिक पंचाशतमकार्षीत् ॥ १५३ ॥ _मूल सूत्रगाथाओं का प्रमाण १८० है तथा विवरम् गाथाओं की संख्या ५३ है । इस प्रकार १८०+५३ मिलकर २३३ गाथाएं हैं। जिस प्रकार धरसेन प्राचार्य के द्वारा उपदिष्ट महाकम्मपयदि पाहुड का जपसंहारकर पखंडागम रचे गए, इसी प्रकार गुरमधर प्राचार्य ने १८० गाथाओं में कषायपाहुड द्वारा आगम का उपसंहार किया था । * The traditional date of Mahavira's Nirvana is 470 years before Vikrama according to the Svetambaras and 605 according to the Digambaras. महावीर निर्वाण के विषय में मैसूर के प्रास्थान महाविद्वान स्व.पं. शांतिराज शास्त्री ने तत्वार्थ सूत्र की भास्करनंदी रचित संस्कृत ग्रंथ की भूमिका में विस्तृत विवेचन किया था।Page Navigation
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