Book Title: Kar Bhala Ho Bhala
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 15
________________ 21AUR कर भला हो भला अगले दिन निर्भगा उद्यान में जाकर पौषधशाला में बैठ गई। उसने संकल्प लिया जब तक मेरे धर्मपिता का यह संकट दूर नहीं होगा, चारों आहार का त्याग है। ridhrtal और वह नमोकार मंत्र का अखण्ड जप करने लगी। तीन दिन, तीन रात बीतने को हुये। तीसरी रात के अन्तिम प्रहर में अचानक पूर्व दिशा में शासन माता चक्रेश्वरी का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। रुन-झुन घुघल की मधुर झंकार होने लगी। एक दिव्य ध्वनि गूंजी ( पुत्री ! मैं तेरे अखण्ड शील और कठोर तप से प्रसन्न हूँ। बोलो, क्या चाहती हो? 1.९० निर्भगा ने कहा माता ! मेरे धर्मपिता सेठ मणिभद्र पर अचानक संकट आ पड़ा है इसे दूर करिये। तथास्तु ! जा यह उपद्रव शान्त हो जायेगा। 0: 400000 30. ०० 0000 GVA

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