Book Title: Kar Bhala Ho Bhala Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education BoardPage 14
________________ कर भला हो मला | निर्भगा ने हाथ जोड़कर सेठ को प्रणाम किया हे धर्मपिता ! मैं एक दरिद्र वणिक कन्या हूँ। माता-पिता ने जिस युवक के साथ मेरा विवाह किया वह मुझे छोड़कर भाग गया। अब बेसहारा हूँ। क्या आप मुझे आश्रय दे सकेंगे? पुत्री तुमने मुझे धर्मपिता कहा है तो मेरे घर में बेटी बनकर रहो। निर्भगा के चेहरे पर खुशियाँ छा गईं। सेठ मणिभद्र का एक सुन्दर विशाल उद्यान था। जहाँ तरह-तरह के फल-फूल लगे थे। इस उद्यान की विशेषता थी कि बारह महीने फल-फूल से लदा रहता था। एक दिन प्रातःकाल उठकर मणिभद्र ने देखा तो चकित रह गये। अरे ! यह क्या? उद्यान) स्वामी ! मालूम नहीं, रातों रात के सभी वृक्ष सूखे पड़े हैं। कैसी हवा चली है कि सभी वृक्ष फूल मुझयि हुए हैं। पतझड़ की तरह मुझ गये, फूल कुम्हला गये। A 2371 FUr THAN 100 G सेठ उदास मुँह लटकाये घर वापस आया तो निर्भगा ने पूछा। सेठ ने सारी घटना सुनाकर कहापता नहीं, किस पाप का उदय हुआ | / पिताश्री ! आप चिन्ता न करें ! जैसे भूख को है कि बारह महीने हरा-भरा रहने । प्रतिकार भोजन है वैसे ही पाप का प्रतिकार ) वाला उद्यान अचानक सूख गया। धर्म है। मैं अपनी धर्माराधना से किसी भी अज्ञात पाप का प्रभाव दूर करूंगी। 0/0/934 GOPage Navigation
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