Book Title: Kar Bhala Ho Bhala Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education BoardPage 16
________________ कर भला हो भला निर्भगा उठी ! सूर्य की किरणें पूर्व दिशा में चमक रही थीं, उधर उद्यान में चारों तरफ वृक्ष लहलाने लग गये। उन पर मोर, शुक, कोयल आदि पक्षी चहचहाने लगे। अरे ! चमत्कार हो गया। उद्यान वापस हरा-भरा हो गया। وام کی ঠ नगर में बिजली की तरह खबर फैल गई। लोगों के झुण्ड के झुण्ड उद्यान की तरफ आने लगे। तब तक सेठ-सेठानी भी वहाँ पहुँच गये। निर्भगा ने उठकर सेठ को प्रणाम किया- जीवन के अन्तिम क्षणों में उसने एक दिन सेठ मणिभद्र से कहा पिताश्री ! यह आपके पुण्यों का ही प्रभाव है। मुझ जैसी अभागिनी को आपने ही धर्म मार्ग से लगाया, आपने ही धर्म का बोध दिया। अब निर्भगा नौकरानी नहीं, घर की देवी की तरह सबका सम्मान पाने लगी । पिताश्री ! जिस धर्म के प्रभाव से मैंने नरक तुल्य दुःखों से उठकर स्वर्गिक जीवन प्राप्त किया है। मैं अब उसी को समर्पित होना चाहती हूँ। पुत्री ! धर्म ही मनुष्य जीव रूपी मन्दिर का भगवान है। इसी की आराधना से जीवन सफल होता है। निर्भगा ने अन्तिम समय में अनशन किया और शुभ भावों के साथ शरीर त्यागकर देवलोक में देवी बनी। 12Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38