Book Title: Kar Bhala Ho Bhala
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 27
________________ करभला हो भला राजा ने लड्डू के डिब्बे में सोने की मोहरें भरकर पण्डित को दे|| मन ही मन पण्डितानी ने सोचादी। कुछ दिन बाद पण्डित घर आया तो पत्नी ने पूछा- । हैं ! यह क्या हुआ? लड्डू कैसे लगे, बहुत स्वादिष्ट थे लड्डू ! Amoll वह मी नहीं? महर हमारी बेटी ने खाये / बेटी ने क्या महाराज ने स्वयं कहाँ चला गया? कि नहीं? खाये और दिल खोलकर प्रशंसा की। Doo पण्डित ने कहा- हाँ, और एका यह सुनकर पण्डितानी कुछ सोचती रही। फिर बोलीखुशी की बात है, हम वाह ! अब तो मैं बेटी को पीहर शीघ्र ही नाना-नानी बुलाऊँगी, पहली सन्तान पीहर बनने वाले हैं। में ही होती है न! कुछ दिन बाद पण्डितानी के कहने पर ब्राह्मण आराम शोभा को लिवाने गया। पहले तो राजा ने मना किया पर बहुत जिद्द करने पर आखिर सैनिकों और सेवक सेविकाओं के साथ आराम शोभा को पीहर भेज दिया, वह उद्यान भी छत्र की तरह उसके साथ-साथ आया। 23

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