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LOOK
LEPAN
Rs. 20.00
जैन ऐजुकेशन बोर्ड प्रस्तुति
कर भला हो भला
आरामशोभा की कथा
Vol 21
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Ki "युवा हृदय सम्राट पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनिजी म.सा. की प्रेरणा..
की प्रेरणा अर्हम युवा ग्रुप
पस्ती द्वारा परोपकार के कार्य... YUVA
YUVA GROUP एक नया प्रयोग...
GROUP करुणा के सागर पूज्य गुरुदेव... जिनके हृदय में दूसरों के हित, श्रेय और कल्याण की भावना रही है... उनके चिंतन से एक अभिनव विचार का सृजन हुआ और उन्होने मानवसेवा, जीवदया के कार्य के साथ अध्यात्म साधना करने के लिए “अर्हम युवा ग्रुप” की स्थापना की..!
पूज्य गुरुदेव के प्यार से प्रेरणा पाकर यह महा अभियान समस्त मुंबई के युवक-युवतीओं का एक मिशन बन गया ! इस महा अभियान में प्रतिदिन स्वेच्छा से नये नये युवक युवंतियाँ जुडते जा रहे हैं। यह उत्साही युवावर्ग हर माह हजारों किलो की पस्ती एकत्र करके उसका विक्रय करता है और उस राशी से परोपकार के कार्य करता है।
पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन और निर्देशन के अनुसार ये युवक-युवतीयाँ हर माह के प्रथम रविवार को पार्टी, पिक्चर या प्रमाद करने के स्थान पर परमात्मा पार्श्वनाथ की जप साधना करके मनकी शांति और समाधि प्राप्त करते हैं।
दूसरे रविवार को सेवा का कार्य करने के लिए घर-घर जाकर अखबारों की पस्ती इकठ्ठी करते हैं और कड़वे-मीठे अनुभव द्वारा अपने अहम्को चूर कर, Ego कोGo कर, सहनशील और विनम्रबनते हैं।
तीसरे रविवार को पस्ती से पाये गये रूपयो से गरीब, आदिवासी, बीमार, अपंग, अंधे, वृद्ध आदि की जरूरत पूरी करते है। वे उन्हें केवल वस्तुयें या अनाज, दवा आदिही नहीं देते अपितु उन्हें प्यार, सांत्वना आश्वासन और आदर भी देते हैं। उनकी दर्दभरी बातें सुनते हैं, अनाथ बच्चों के साथ खेलते हैं और वृद्धजनों को व्हीलचेर पर बैठाकर उनकी इच्छानुसार प्रभु दर्शन आदि कराने भी ले जाते हैं । वे कत्लखाने जाते हुए पशुओं को बचाते हैं । बीमार, घायल पशु-पक्षीयों का इलाज भी कराते हैं ।
बदले में उन्हें क्या मिलता है ? उन्हें एक प्रकार का आत्मसंतोष प्राप्त होता है । वे जो अनुभव करते हैं उसके लिए कोइ शब्द ही नही है। उनका दिल अनुकंपा से भर उठता है।
इन युवाओं ने आजतक दुनिया के सिक्के का सिर्फ एक ही पहलू-सुख ही देखा था। अब सिक्के का दूसरा पहलू दुनिया का दुःख, वास्तविकता देखने के बाद उन्हें अपना सुख अनंत गुना बड़ा लगने लगा है।
बस! पूज्य गुरुदेव ने आज की युवा पीढ़ी को शब्दों द्वारा समझाने के बदले प्रयोग द्वारा उनका जीवन परिवर्तन कर दिया। प्रयोग और प्रत्यक्ष देखने और अनुभूति करने के बाद समझाने की जरूरत ही नहीं रही। ___चौथे रविवार को अपने पूज्य गुरुदेव के दर्शन करके, उनके सानिध्यमें उनके शुक्ल परमाणुओं द्वारा अपनी ओरा, अपने भाव और अपने विचारों को शुद्ध करके शांतिपूर्ण, निर्विघ्न अपने सारे कार्य सफल करते हैं और नया मार्गदर्शन... नया बोध... नये विचार पाकर अपना जीवन धन्य बनाते हैं।
आप भीजीवन में 'गुरु' द्वारा प्रेरणा पाकर परोपकार के इस महा अभियान में अपना सहयोग देवें और अपना अमूल्य मानवंजीवन सफल बनायें।
अर्हम ग्रुप के सदस्य बनने के लिए सम्पर्क करें - Ritesh -9869257089,Chetan-9821106360, Jai -9820155598
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हमारा संदेश... ज्ञान... ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है। बच्चों के लिए ज्ञान प्राप्ति का सरल माध्यम है आकर्षक और रंगीन चित्र... बच्चे जो देखते हैं वही उनके मानस मे अंकित हो जाता है और लम्बे अर्से तक याद भी रहता है।
दूसरी बात... आज के Fast युग में बच्चों के पास पढ़ाई के अलावा इतनी साईड एक्टीवीटी है कि उन्हें लम्बी कहानियाँ और बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने का समय ही नहीं है।
हमारे जैनधर्म मे... भगवान महावीर के आगमशास्त्रो में ज्ञान का विशाल भंडार भरा हुआ है । ज्ञाताधर्मकथासूत्र जैसे आगम में कथानक के रूप में भी कहानियों का खजाना है। ___ बाल मनोविज्ञान की जानकारी से हमे ज्ञात हुआ कि बच्चों की रूचि Comics में ज्यादा है । उन्हें पंचतंत्र, रीचीरीच, आर्ची, Tinkle आदि Comics ज्यादा पसंद है और उसे वे दोचार - पाँच बार भी पढ़ते है और Comics एक ऐसाAddiction है जिसे बड़े भी एक बार अवश्य पढ़ते है । यही विषय पर चिंतन-मनन करते हुए हमारे मानस में भी एक विचार आया... क्यों न हम भी जैनधर्म के ज्ञानको... हमारे भगवान महावीर के जीवन को, हमारेतीर्थंकरको... बच्चो तक पहुँचाने के लिएComics Book का माध्यम पसंद करे...?
शायद यही माध्यम से बच्चों और बच्चों के साथ बड़े भी जैनधर्म के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी पाकर अपने आप में कुछ परिवर्तन लायेंगे ।
परमात्मा के विशाल ज्ञान सागर में से यदि हम कुछ बूंदे भी लोगों तक पहुँचाने में सफल हुए तो हमारा यह प्रयास यथार्थ है।
जैनधर्म की क्षमा, वीरता, साहस, मैत्री, वैराग्य, बुद्धि, चातुर्य आदि विषयों की शिक्षाप्रद कहानियाँ भावनात्मक रंगीन चित्रों के माध्यम द्वारा प्रकाशित करने का सदभाग्य ही हमारी प्रसन्नता है।
यह Comics हमारे Jain Education Board - Look n Learn के अंतर्गत प्रकाशित हो रही है।
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प्रस्तावना
अध्यात्म जगत् का एक सर्वमान्य सिद्धान्त है - सुख और दुःख का देने वाला आत्मा स्वयं ही है-अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य । व्यवहार जगत् में भी हम यही देखते हैं अपने किये हुए कर्मों के कारण प्राणी को सुख-दुःख मिलते हैं। यदि हम सेवा, परोपकार, अभयदान जैसे परोपकारी कर्म करते हैं तो उनका शुभ फल और हिंसा, कपट, दूसरों का धन हरण आदि अशुभ कर्म करते हैं तो उनके बुरे परिणाम हमें भुगतने ही पड़ते हैं। कर्म करते समय मनुष्य अनजान - सा रहता है, परन्तु फल-भोग के समय उसे अपने किये कार्यों पर पछतावा और प्रसन्नता अवश्य होती है।
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आराम शोभा की कथा में इसके पूर्व जीवन के प्रसंगों में उसके पिता कुलधर द्वारा किया गया अपनी भुआ जी का धन-अपहरण एक सामान्य घटना भले ही हो, परन्तु उसी के पाप-फलस्वरूप अकस्मात् धन-हानि, दरिद्रता जैसे कटु फल प्राप्त हुए। सेठ मणिभद्र द्वारा प्रदत्त आश्रय को निर्भगा द्वारा एहसान मानकर उसके सूखे उद्यान को अपनी तपस्या के प्रभाव से हरा-भरा बना देना, नाग को अभयदान देकर उसकी रक्षा करना जैसे परोपकारी कर्मों का फल उसे अनेकानेक सुखों के रूप में प्राप्त हुआ।
प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान
LOOK LEPAN
Jain Education Board
PARASDHAM
मूल्य : २०/- रु.
Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai- 400077. Tel : 32043232.
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कर भला हो भला
वत्स ! अब मेरा अन्तिम समय आ गया है। परलोक प्रस्थान करने से पूर्व मैं तुम्हें दो बातें कहना चाहता हूँ।
चम्पापुर में कुलधर नाम का एक साधारण गृहस्थ रहता था। कुलधर के पिता श्रेष्ठी धर्मधर बड़े ही धार्मिक और नीतिनिष्ठ गृहस्थ थे। उन्होंने एक दिन कुलधर को अपने पास बुलाकर कहा
पिताजी, आप जो कहेंगे उसको पालन करने का
मैं वचन देता हूँ।
धर्मधर
वत्स ! मैंने जीवन में सत्य, सरलता और सादगी को ही धर्म समझा है। तम भी इसी मार्ग पर बोले
तो कभी कष्ट नहीं पाओगे।।
| और जो भी कमाओ उसका एक-सोलहवा) पिताजी ! आपकी दोनों बातें भाग शुभ कार्यों में खर्च करना, तुम्हारी मैंने गाँठ बाँध लीं। मैं अवश्य लक्ष्मी कभी नहीं घटेगी।
इनका पालन करूंगा।
कुछ दिन बाद धर्मधर परलोकवासी हो गये।
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कर भला हो भला
कुलधर पिता की शिक्षा के अनुसार नीतिपूर्वक अपना जीवन चला रहा था। कुलधर की पत्नी कुलानन्दा ने क्रमशः सात पुत्रियों को जन्म दिया। सातों ही रंग-रूप में एक से एक सुन्दर
थीं।
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एक दिन कुलानन्दा उदास बैठी थी। कुलधर ने पूछा
स्वामी ! हमारे सात-सात पुत्रियाँ हैं और आप पूछ रहे हैं कि किस बात की चिन्ता में बैठी हो ?
प्रिये । क्या बात है ? किस बात की चिन्ता में बैठी हो ?
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वे दोनों आपस में बातें कर ही रहे थे कि द्वार पर एक वृद्ध महिला ने पुकारा
अरे कुलधर ! भाई धर्मधर कहाँ हैं?
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कुलधर ने समझाया
तू इनकी चिन्ता मत कर, हर कन्या जन्म से अपना भाग्य साथ लेकर आती है। अगर इनके भाग्य में सुख लिखा है तो एक से बढ़कर एक घर और वर मिलेगा।
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PRE कर भला होभला
आवाज सुनकर कुलधर बाहर आया- अरे भआजी आप?
क्या बताऊँ बेटा ! तुम्हारे फूफाजी ने विदेश में व्यापार करके खूब अचानक कैसे आना हुआ?
||धन कमाया। हम सब सम्पत्ति लेकर जहाज से वापस आ रहे थे। और अकेली ऐसी हालत में
कि अचानक समुद्र में भयंकर तूफान आ गया और हमारा जहाज | डूब गया। डूबते-डूबते मुझे जहाज का एक टुकड़ा हाथ लग गया। | जिसके सहारे में किनारे पर | पहुंची हूँ। बेटा! हाय, मैं | तो बेसहारा हो गई।
कुलधर ने भुआजी को आश्वासन दिया और हवेली का एक कमरा उनके लिये खोल दिया
आप चिन्ता शोक न करें। यहाँ आराम से रहें और धर्म-ध्यान में समयबितायें। हम आपकी सेवा करेंगे।
भुआजी आराम से वहाँ रहने लगीं।
एक दिन कुलानन्दा भुआजी के लिए खाना लेकर आई। देखा, भुआजी का कमरा भीतर से बन्द है। खिड़की की जाली में से भीतर झाँका तो उसकी आँखें फटी रह गईं
an हैं ! इतने मूल्यवान रत्न भुआजी O U के पास हैं और वह ऐसी दरिद्र
हालत में रहती हैं।
उसनसाचा- एक-एक रत्न लाखों
का होगा। इन रत्नों से तो मेरी पुत्रियों का विवाह आराम
से हो जायेगा।
वह विचारों में खोई उलटे पैर वापस लौट गई।
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कर भला हो भला कुछ दिन तो वह चुपचाप रही। परन्तु उसके पेट में यह बात परन्तु उसका मन भुआजी की रत्न-मंजूषा में उछलने लगी। एक दिन एकान्त में उसने कुलधर से कहा- | | फँस गया। वह हर समय दूध पर ताक लगाई भुआजी बेसहारा बनकर हमारी रोटियाँ खा ) नहीं, नहीं, किसी का धन चुराना
बिल्ली की तरह रहती। एक रात कुलानन्दा को रही हैं। उनके पास तो अमूल्य रत्न हैं। अगर प्राण-हरण से भी भयंकर पाप है।
मौका मिल गया। वह भुआजी के कमरे में आई। हम उन्हें ले लें तो हमारी सब पुत्रियों का / हम ऐसा पाप नहीं करेंगे, तुम,
वाह ! भुआजी सोई हुई हैं। मैं विवाह धूमधाम से हो जायेगा। ऐसा सोचो भी मत
चुपचाप रत्न-मंजूषा ले जाती हूँ। किसी को पता भी नहीं चलेगा।
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यह सुनकर कुलानन्दा चुप हो गई।
वह पेटी उठाकर दबे पैर वापस आ गई। प्रातः भुआजी उठीं। पेटी दिखाई नहीं दी तो छाती पीटती हुई गला | फाड़कर रोने लगीं। कुलधर दौड़कर आया और पूछा, भुआजी बोली
वह अपनी पत्नी की कारस्तानी समझ चुका था। वापस लौटकर उसने
पत्नी को समझाया। बहुत समझाने-बुझाने पर कुलानन्दा ने कहाअरे ! मेरा सब कुछ भुआजी! आप चिन्ता मत लुट गया। कोई मेरी पेटी करिये। चोर का पता शीघ्र ही || हाँ ! पेटी तो मैंने ही चुराई है, पर मैं इससे अपनी सातों बेटियों उठाकर ले गया। मेरे तो लगा लेंगे फिर यहाँ आपको || का विवाह धूमधाम से करुंगी"फिर आप कमाकर भुआजी की प्राण उसी में थे। अब मैं क्या कमी है? रोटी, कपड़ा सब | सम्पत्ति वापस लौटा देना। मुझे किसी का धन हड़पना नहीं है,
कैसे जीऊँगी। ५) कुछ तो मिल ही रहा है। किन्तु अपनी पुत्रियों का विवाह तो करना है।
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कुलधर ने भुआजी को सांत्वना दी।
कुलधर तो जैसे दो पाट के बीच फँस गया।
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पत्नी की बातों में आकर और रत्नों की चमक देखकर | कुलधर का मन भी फिर गया। उसने रत्नों की पेटी भुआजी को वापस नहीं की । रत्नों की चोरी से भुआजी का दिल बैठ गया। वह दिन-रात कलपती रहतीं
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मेरा धन चुराने वाला कभी सुखी नहीं रहेगा।
कर भला हो भला
इधर कुलधर ने रत्नों को बेचकर सातों पुत्रियों का विवाह खूब धूमधाम से कर दिया और बाकी धन व्यापार में लगा दिया। एक दिन कुलधर दुकान पर बैठा था कि एक नौकर दौड़ता हुआ आया
इसी आघात से एक दिन उसने प्राण छोड़ दिये।
कुलधर दौड़कर आया, गोदाम में सामान जलता देखकर वह सिर पीटने लगा
हाय, मैं तो बर्बाद हो गया।
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सेठ जी, गजब हो गया। हमारे माल गोदाम में आग लग गई। कपड़ा, किराना आदि सब सामान जलकर राख हो गया।
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घर आकर उसने पत्नी को सब घटना सुनाई। कुलानन्दा पश्चात्ताप करने लगी।
मैंने आजी की आत्मा को तड़फाया, उनकी चोरी की, उसी पाप का यह फल है।
रत्नों की चमक देखकर मेरी मति भी मारी गई। पिताजी कहते थे, पाप का पैसा और बाढ़ का पानी कभी टिकता नहीं।
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या कर भला हो भल्ला गोदाम में लगी आग ने कुलधर की कमर तोड़ दी। बाजार | | कन्या कुछ बड़ी हुई तो लोग पूछतेसे उधार लिये माल का पैसा चुकाते-चुकाते उसका घर दुकान सब बिक गये। दाने-दाने का मोहताज हो गया।
| भाई कुलधर! इस कन्या । हमारे दुर्भाग्य की प्रतीक का नाम क्या है?
यह निर्भगा है। इस स्थिति में कुलानन्दा ने एक पुत्री को जन्म दिया।
'हे भगवान् ! किन कर्मों का फल मिल रहा है मुझे। गरीबी में आटा गीला ! एक तो दो जून रोटी की फिकर और फिर आठवीं पुत्री।
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यह कोई अभागिनी कन्या हमारे । घर आई है ! जिसके पाँव पड़ते। ही सब धन-वैभव नष्ट हो गया।
एक दिन निर्भगा के विवाह की चिन्ता में कुलधरे निर्भगा को न तो माँ-बाप का प्यार मिला और न ही कोई परवरिश ! खेत | उदास बैठा था कि तभी एक परदेसी युवक आया। के किनारे लगी काँटों की बेल की तरह वह अपने आप बढ रही थी। कुलधर को चबूतरे पर बैठा देखकर पूछाधीरे-धीरे वह बड़ी हुई। उसे देखकर कुलनन्दा ने अपने पति से कहा
सेठ जी धनदेव का घर
कौन-सा है? देखो, पुत्री बड़ी हो गई है। अब कौन पसन्द करेगा इसको? न तो इसका विवाह कैसे करेंगे24रूप-रंग, न ही कोई गुण ! न हमारे
पास दहेज के लिए धन है। 4
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कर भला हो भला | कुलधर ने परदेसी युवक को गौर से देखा-उसकी बोली- व्यवहार देखकर सेठ को आशा जगी और वह घूर घूरकर उसे देखता रहा। परदेसी बोला
सेठ जी, मुझे यों क्यों देख रहे हो?
तुम कहाँ से आये हो? नाम क्या है तुम्हारा? क्या करते हो ? विवाह हो गया क्या?
परदेसी झुंझलाकर बोला
आप तो ऐसे पूछताछ कर रहे हैं जैसे लड़की ब्याहनी हो?
कुलधर ने उस युवक का हाथ पकड़ लिया और प्रेमपूर्वक घर के अन्दर ले गया। मीठा शर्बत पिलाया।
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आज यह युवक भाग्यवश आ गया है। निर्भगा के साथ इसका विवाह कर दूँ तो चिन्ता मिटे ।
बातों ही बातों में उसने युवक का परिचय ले लिया।.
| मैं चोल देश से आया हूँ। धनदेव की दुकान पर नौकरी करता हूँ। मेरे माता-पिता बचपन में ही गुजर गये सो अकेला हूँ। मेरा नाम है नन्दन ! धनदेव पत्र देकर अपने घर पर भेजा है।
यही सामने वाला घर धनदेव
का है। तुम पत्र देकर वापस मेरे पास आ जाना |
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कर भला हो भला नन्दन पत्र देकर वापस आया तो कुलधर ने उसे|| मैं और विवाह? कौन) तुम में क्या कमी है? स्वस्थ स्वादिष्ट भोजन कराया और कहा
माँ-बाप मुझ गरीब को हो, जवान हो, चलो मैं अपनी
अपनी कन्या देंगे। कन्या तुम्हें देता हूँ। तुम परदेस में अकेले ही रहते हो, भोजन की कितनी तकलीफ पड़ती होगी? विवाह
क्यों नहीं कर लेते
यह सुनकर नन्दन हक्का-बक्का रह गया।
वह कुछ बोलता, तब तक कुलधर ने निर्भगा को बुलाकर उसका हाथ नन्दन के हाथ में दे दिया। /ो आलो
तुम्हारी हुई।
| कुलानन्दा ने कुछ नये वस्त्र, दो चाँदी के सिक्के और रास्ते में खाने का सामान एक पोटली में बाँधकर दे दिया। नन्दन निर्भगा को लेकर चला। रात हो जाने से रास्ते में एक मन्दिर में दोनों रुके। निर्भगा ने खाना नन्दन को परोस दिया। नन्दन ने भोजन कर लिया। थोड़ा बहत बचा वह निर्भगा ने खा लिया।
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और दोनों मन्दिर के अहाते में सो गये।
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कर भला हो भला | लेटे-लेटे नन्दन के मन में विचार उठा
सोचते-सोचते नन्दन एकदम खड़ा हुआ। उसने नौकटी में जितना मिलता हैं उसमें मेरा गुजारा भी ठीक
| पोटली उठाई निर्भगा को सोई छोड़कर भाग छूटा। से नहीं होता, इसका गुजारा कैसे चलेगा? इसे देखकर मालिक कहीं मुझे ही नौकरी से न निकाल दे? यह सोई। हुई है। छोड़कर चला जाऊँ तो इसे पता भी नहीं चलेगा।
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प्रातःकाल निर्भगा उठी। नन्दन को वहाँ | थोड़ी देर तो वह इधर-उधर घूमकर नन्दन को देखती न देखकर उसने आवाज लगाई- रही। फिर निराश होकर बैठ गई और सोचने लगी
मेरी तकदीर में सुख नहीं है तो कोई कैसे सुखी कर सकेगा। माता-पिता ने भार समझकर घर से
निकाल दिया, पति ने बोझ समझकर छोड़ दिया। अरे! स्वामी
अब कौन सहारा है मेरा, कहाँ ठिकाना है? कहाँ हैं आप?
कुछ देर सोचकर वह मन्दिर के सामने की पगडण्डी पर चल पड़ी/ चलती-चलती | नगर में पहुंची। एक सुन्दर से विशाल भवन पर नमोकार मंत्र लिखा देखकर,
| भद्रे ! तुम कौन हो और खड़ी-खड़ी हाथ जोड़कर नमोकार मंत्र पढ़ने लगी। तभी भवन में से सेठ मणिभद्र
यहाँ किसलिए खड़ी हो? निकले। भक्ति पूर्वक हाथ जोड़े एक युवती को देखकर सेठ ने पूछा
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवमझायाणं णमो लोए सव्व साहूर्ण
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कर भला हो मला
| निर्भगा ने हाथ जोड़कर सेठ को प्रणाम किया
हे धर्मपिता ! मैं एक दरिद्र वणिक कन्या हूँ। माता-पिता ने जिस युवक के साथ मेरा विवाह किया वह मुझे छोड़कर भाग गया। अब बेसहारा
हूँ। क्या आप मुझे आश्रय दे सकेंगे?
पुत्री तुमने मुझे धर्मपिता कहा है तो मेरे घर में बेटी
बनकर रहो।
निर्भगा के चेहरे पर खुशियाँ छा गईं।
सेठ मणिभद्र का एक सुन्दर विशाल उद्यान था। जहाँ तरह-तरह के फल-फूल लगे थे। इस उद्यान की विशेषता थी कि बारह महीने फल-फूल से लदा रहता था। एक दिन प्रातःकाल उठकर मणिभद्र ने देखा तो चकित रह गये।
अरे ! यह क्या? उद्यान) स्वामी ! मालूम नहीं, रातों रात के सभी वृक्ष सूखे पड़े हैं। कैसी हवा चली है कि सभी वृक्ष
फूल मुझयि हुए हैं। पतझड़ की तरह मुझ गये,
फूल कुम्हला गये।
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सेठ उदास मुँह लटकाये घर वापस आया तो निर्भगा ने पूछा। सेठ ने सारी घटना सुनाकर कहापता नहीं, किस पाप का उदय हुआ | / पिताश्री ! आप चिन्ता न करें ! जैसे भूख को है कि बारह महीने हरा-भरा रहने । प्रतिकार भोजन है वैसे ही पाप का प्रतिकार ) वाला उद्यान अचानक सूख गया। धर्म है। मैं अपनी धर्माराधना से किसी भी
अज्ञात पाप का प्रभाव दूर करूंगी।
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कर भला हो भला अगले दिन निर्भगा उद्यान में जाकर पौषधशाला में बैठ गई। उसने संकल्प लिया
जब तक मेरे धर्मपिता का यह संकट दूर नहीं होगा, चारों
आहार का त्याग है।
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और वह नमोकार मंत्र का अखण्ड जप करने लगी।
तीन दिन, तीन रात बीतने को हुये। तीसरी रात के अन्तिम प्रहर में अचानक पूर्व दिशा में शासन माता चक्रेश्वरी का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। रुन-झुन घुघल की मधुर झंकार होने लगी। एक दिव्य ध्वनि गूंजी
( पुत्री ! मैं तेरे अखण्ड शील और कठोर तप से प्रसन्न हूँ। बोलो, क्या चाहती हो?
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निर्भगा ने कहा
माता ! मेरे धर्मपिता सेठ मणिभद्र पर अचानक संकट आ पड़ा है इसे दूर करिये।
तथास्तु ! जा यह उपद्रव
शान्त हो जायेगा।
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कर भला हो भला
निर्भगा उठी ! सूर्य की किरणें पूर्व दिशा में चमक रही थीं, उधर उद्यान में चारों तरफ वृक्ष लहलाने लग गये। उन पर मोर, शुक, कोयल आदि पक्षी चहचहाने लगे।
अरे ! चमत्कार हो गया। उद्यान वापस हरा-भरा हो गया।
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नगर में बिजली की तरह खबर फैल गई। लोगों के झुण्ड के झुण्ड उद्यान की तरफ आने लगे। तब तक सेठ-सेठानी भी वहाँ पहुँच गये। निर्भगा ने उठकर सेठ को प्रणाम किया-
जीवन के अन्तिम क्षणों में उसने एक दिन सेठ मणिभद्र से कहा
पिताश्री ! यह आपके पुण्यों का ही प्रभाव है। मुझ जैसी अभागिनी को आपने ही धर्म मार्ग से लगाया, आपने ही धर्म का बोध दिया।
अब निर्भगा नौकरानी नहीं, घर की देवी की तरह सबका सम्मान पाने लगी ।
पिताश्री ! जिस धर्म के प्रभाव से मैंने नरक तुल्य दुःखों से उठकर स्वर्गिक जीवन प्राप्त किया है। मैं अब उसी को समर्पित होना चाहती हूँ।
पुत्री ! धर्म ही मनुष्य जीव रूपी मन्दिर का भगवान है। इसी की आराधना से जीवन सफल होता है।
निर्भगा ने अन्तिम समय में अनशन किया और शुभ भावों के साथ शरीर त्यागकर देवलोक में देवी बनी।
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कर भला हो भला देवलोक से आयु पूर्ण कर निर्भगा के जीव ने बलासा गाँव में अग्निशर्मा ब्राह्मण के घर जन्म लिया। माँ का नाम अग्निशिखा था। कन्या का नाम विद्युतप्रभा रखा गया। विद्युतप्रभा दिखने में सुन्दर, चपल और बोलने में बड़ी मधुर थी। छः-सात वर्ष की हुई तो घर के सभी काम-काज में माँ का हाथ बँटाने लगी।
विद्युतप्रभा लगभग दस वर्ष की हुई कि एक दिन अग्निशर्मा औषध लेने नगर में गया। पीछे से अग्निशिखा का बुखार अचानक उसकी माँ को तेज बुखार आ गया। अग्निशर्मा || बहुत तेज हो गया। वह कुछ देर बड़बड़ाती रही फिर उसे एक-दो ने उसकी नाड़ी परीक्षा की, तो चिन्तित होकर बोला- | हिचकी आईं और प्राण पखेरू उड़ गये। विद्युतप्रभा रोने लगी।
बेटी ! तुम माँ के पास बैठो, मैं नगर में जाकर शीघ्र ही औषध लेकर आता हूँ। यह काला-बुखार बिना औषध के नहीं जायेगा।
माँ-माँ ! क्या हो गया तुझे?
रोने की आवाज सुनकर पास-पड़ोस की महिलायें आ गईं।
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कर भला हो भला तब तक अग्निशर्मा भी आ गया। पत्नी को मरी देखकर बहुत दुःखी हुआ। उसने पुत्री को छाती से लगाया।
बेटी ! अब रोने से कुछ नहीं होगा। तेरी माँ हमें छोड़कर चली गई।
अग्निशिखा का दाह-संस्कार कर दिया गया।
अब समूचे घर का बोझ नन्हीं विद्युतप्रभा पर आ गया। वह सुबह चार बचे उठती, गायों की सेवा करती, फिर घर का काम सम्हालती। पिता के लिये भोजन बनाती। फिर गायों को चराने के लिये जंगल ले जाती शाम को घर आती फिर वही काम
| पास-पड़ौस की औरतें अग्निशर्मा को समझातीपण्डित, यह नन्ही-सी जान और आसमान का बोझ ! क्या इसे भी,
बेमौत मारना चाहते हो?
क्या करूँ? अब घर अभी तो तुम्हारी उम्र भी कुछ को सँभालने वाला भी नहीं पैंतीस वर्ष के युवा हो, दूसरा )
तो कोई नहीं।/ विवाह क्यों नहीं कर लेते?
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पड़ोसियों के बार-बार आग्रह करने और विद्युतप्रभा पर पड़ी काम की जिम्मेदारी को देखते हुये पण्डित अग्निशर्मा ने दूसरा विवाह कर लिया।
एक वर्ष बाद नई माँ को एक कन्या हुई। विद्युतप्रभा उससे बहुत प्यार करती। हर समय गोदी में लिए खिलाती रहती।
मेरी प्यारी-सी बहना,
कर भला हो भला
तेरा चन्दा-सा मुखड़ा।
नई-नवेली पत्नी स्वभाव से बहुत तेज थी। वह घर में बनठन कर महारानी-सी बैठ जाती और विद्युतप्रभा को नौकरानी की तरह दिन-रात काम में लगाये रखती। ऊपर से डाँटती भी रहतीअरी निठल्ली ! मन भर खाती है और सेर भर काम नहीं करती
विद्युतप्रभा सौतेली माँ के व्यवहार से बहुत दुःखी रहती। परन्तु समझदार थी इसलिए चुपचाप सुनती और काम में लगी रहती । एक दिन विद्युतप्रभा गायें लेकर जंगल में चराने जा रही थी। खाने का भात बाँधने लगी तो माँ ने डाँट दिया।
पेटू कहीं की, दिन भर
खाना खाना ही दिखता है। देख गायें चली जा रही हैं और तू खाना बाँधने में लगी है।
सौतेली माँ की डाँट सुनकर विद्युतप्रभा का मन दुःखी हो गया। वह खाना छोड़कर भूखी ही गायों के पीछे चल दी।
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कर भला हो भला गायें जंगल में इधर-उधर चरने लगीं। धूप तेज हो जाने से विद्युतप्रभा एक बबूल की छितरी छाया में घुटनों पर सिर रखकर उदास-सी भूखी-प्यासी बैठी थी। सोच रही थीमैं कैसी अभागिन हूँ। बचपन में माँ ।
A छोड़कर चली गयी, दिन भर घर का
DO010 काम करने पर भी सौतेली माँ खुश नहीं।
सभी मुझ पापिन से नाराज हैं।
वह सुबक-सुबक कर रोने लग गई।
तभी एक काला नाग उसके सामने आकर फन उठाये खड़ा हो गया। नाग को देखकर वह घबरा गई।
तभी नाग मनुष्य की भाषा में बोलाकन्ये ! डरो मत ! मैं तुझे नहीं काटूंगा। तेरी शरण में आया हूँ, मेरी रक्षा कर।
नाग! बचाओ!
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डर के मारे उसके मुँह से शब्द नहीं निकले।
| विद्युतप्रभा आश्चर्य से नाग को देखने लगी। नाग बोला
पुत्री ! डर मत, मेरे पीछे साँप
पकड़ने वाले आ रहे हैं, वे दुष्ट मुझे पकड़कर ले जायेंगे, जल्दी कर, मुझे छिपाले।
ठीक है नाग बाबा, आप मेरी गोदी में
छुप जाइये।
नाग की याचना सुनकट विद्युतप्रभा ने जाग को गेंद बनाकर अपनी गोद में छुपा लिया।
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कर भला हो भला तब तक नाग पकड़ने वाले सपेरे आ धमके, एक ने पूछा- विद्युतप्रभा ने अपना पल्लू हटायाक्योंरी छोकरी! क्या सर्प ! ना बाबा
नाग बाबा इधर कोई सर्प सर्प का नाम मत लो,
बाहर आ जाओ ! वे देखा तूने?
मुझे डर लगता है।
दुष्ट चले गये।
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अरे कहाँ चले गये नाग बाबा!
Yअरे, इससे क्या पूछते हो? || वह नाग को इधर-उधर ढूँढ़ने लगी।
अगर यह साँप देखती तो
चीखकर भाग गई होती। नागदेव हँसा| वे साँप को ढूँढ़ने आगे चले गये। चलो उस ओर चलो। बाले ! तुमने माँगा भी तो
क्या माँगा? खैर, तुम्हारी । तभी एक देव उसके सामने आकर प्रकट हुआ, बोला
इच्छा पूर्ण होगी। हे बाले ! मैं नागदेव तुझ पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुमने मुझे बचाया, परोपकार किया,
अब कुछ वरदान माँग
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नाग बाबा ! आप प्रसन्न हैं तो इस जंगल में मेरी गायों के लिए छायादार वृक्ष खड़े कर दीजिये न? मेरी गायें
दिनभर धूप में घूमती हैं।
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कर भला हो भला देव ने अपना हाथ ऊपर उठाया-एक सुन्दर-सा बगीचा सामने लहलहाने लगा। देव ने कहा
बाले ! इस उद्यान में तू
NAR सदा घूमती रहना। इसके मधुर फले खाने से तेरी भूख-प्यास सब शान्त हो जायेगी। नहाँ तू जायेगी यह उद्यान > भी तेरे साथ-साथ रहेगा।
देव वरदान देकर आकाश में उड़ गया।
विद्युतप्रभा मुग्ध-सी होकर उद्यान की शोभा संध्या होने पर वह घर की तरफ चली तो उद्यान भी निहारने लगी। घूम-घूमकर उसके मीठे फल उसके पीछे-पीछे चलने लगा। गाँव के लोगों ने यह खाने लगी। कभी वृक्षों से लिपटकर झूमने दृश्य देखा तो आश्चर्य से बातें करने लगेलगती। वह आज अत्यन्त प्रसन्न थी।
क्या मायावी
कन्या है, यह?
अरे! यह क्या चमत्कार है? इस लड़की VS के पीछे-पीछे उद्यान चला
आ रहा है। घर आकर विद्युतप्रभा ने सारी घटना अग्निशर्मा को सुनाई। सौतेली माँ जल-भुन गई।
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दो-तीन वर्ष बाद एक दिन दोपहर के समय विद्युतप्रभा उद्यान में सोई थी। उस समय उस देश का राजा जितशत्रु अपने सैनिकों के साथ उधर से निकला। उद्यान देखकर राजा को आश्चर्य हुआ
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वाह ! क्या रूप है? कौन है यह देवकन्या ? रोको उसे ।
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इस मरुस्थल जैसे जंगल के
बीच इतना सुन्दर उद्यान ? हम यहीं विश्राम करेंगे।
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राजा तथा सैनिकों ने उद्यान में पड़ाव डाल दिया।
राजा ने दौड़ती विद्युतप्रभा को देखा तो उसका | अपूर्व सौन्दर्य देखकर मुग्ध हो गया
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राजा के हाथी-घोड़ों के डर से गायें भागने लगीं। विद्युतप्रभा की नींद खुल गई। वह अपनी गायों को पकड़ने भागी तो उद्यान भी उसके पीछे-पीछे भागने लगा। राजा चकराया, मंत्री से पूछा
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मंत्रिवर, यह क्या माया है ? उद्यान भाग रहा है? जहाँ हम
| वृक्षों की छाया में बैठे थे वे वृक्ष चले गये, धूप चमकने लगी।
सैनिकों ने दौड़कर विद्युतप्रभा को रोका। राजा मंत्री पास आये। मंत्री ने पूछा
यह हमारे देश के महाराज जितशत्रु हैं। आज इस उद्यान में पधारे हैं, आपका परिचय जानना चाहते हैं?
महाराज ! वह देखिये कोई देवकन्या या नागकन्या जा रही है। उसके पीछे-पीछे समूचा उद्यान दौड़ रहा है।
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विद्युतप्रभा ने अपना परिचय दिया तो राजा जितशत्रु ने सैनिकों को भेजकर अग्निशर्मा ब्राह्मण को वहीं बुलवा लिया और कहापण्डित जी ! आपके घर में महाराज ! मेरे अहोभाग्य हैं। हर जो अमूल्य रत्न हैं, हम उसे पिता अपनी कन्या का सुख चाहता है। अपने लिए माँगते हैं। आप जैसा पति पाकर इसका जीवन निश्चित ही आनन्दमय होगा।
कर भला हो भला
वहीं उद्यान में धूम-धाम से राजा ने विद्युतप्रभा के साथ विवाह कर लिया। पण्डित अग्निशर्मा बोलेमहाराज ! कन्यादान पण्डितराज, आपसे कन्यारत्न में देने के लिए मेरे पास, हमने माँगा है, इसलिये हम तो कुछ नहीं है। आपको बारह गाँव देते हैं।
राजा विद्युतप्रभा को लेकर नगर में आ गया। दूसरे दिन विवाहोत्सव मनाया गया। राजा ने घोषणा कीउद्यान भी उसके साथ-साथ चला आया।
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नई रानी विद्युतप्रभा के साथ उद्याने ( आराम ) की शोभा बनी रहती है। इसलिए आज से इनका नाम आराम शोभा होगा। रानी आराम शोभा इस राज्य की पटरानी होंगीं।
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ककर भला हो भला
आराम शोभा के घर से चली जाने के बाद|
सिर खुजलाकर वह इसी का उपाय सोचतीउसकी सौतेली माँ सोचती रहती
कैसे भी आराम शोभा कितना अच्छा होता .
को मार दूं तो उसकी यदि इसके बदले मेटी
जगह मेरी बेटी राजा की बेटी राजा की रानी
रानी बन सकती है। बन जाती
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एक दिन उसने अपने पति से कहा
देखो, श्रावण का महीना आ गया है, अपनी विद्युतप्रभा को लड्डू बहुत भाते थे न? मैं उसके लिए लड्डू बनाती हूँ। तुम लेकर जाओ।
| पण्डितानी ने लड्डू बनाकर उनमें जहर मिला दिया, सोचा
बस, ये लड्डू खाते ही वह तो मर जायेगी। फिर उसकी जगह मैं अपनी
लड़की को रानी बनवा दूंगी।
ठीक है दे दो, मैं
कल चला जाता हूँ। लड्डू का डिब्बा लाकर पण्डित को देते हुये बोली
लो, यह लड्डू और किसी को मत देना। मेरी बेटी विद्युतप्रभा को ही देना, वह कितनी खुश होगी, माँ,
के हाथ के लड्डू खाकर।
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कर भला हो भला पण्डित लड्डु लेकष्ट विद्युतप्रभा से मिलने चला। रात को वह एक देवता ने तुरन्त जहरीले लड्डुओं को अमृतरस से वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। उस वृक्ष पर वही नागदेव रहता भर दिया। था। जिसकी जान विद्युतप्रभा ने बचाई थी। उसे लड्डुओं की सुगन्ध | आई तो उसने अपने ज्ञान से देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ
अरे ! यह तो उसी कन्या को मारने के लिए लड्डू ले जा रहा ।
है जो मेरी उपकारी है।
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सुबह उठकर ब्राह्मण आगे चला। राज-दरबार में || राजा जितशत्रु ब्राह्मण से लड्डू लेकर आराम शोभा के महल में पहुंचकर उसने राजा जितशत्रु को आशीर्वाद दिया। || आया और एक लड्डू आराम शोभा को दिया एक स्वयं खाया। राजा ने श्वसुर का स्वागत किया। ब्राह्मण बोला
वाह ! क्या स्वादिष्ट
महाराज! महाराज ! हमें पुत्री की ।
वाह ! लडू हम || लड्डू हैं। ऐसे लड्डू तो हमने यह मेरी माँ के हाथ बहुत याद आ रही है।
स्वयं अपने हाथों आज तक नहीं खाये। / के लड्डू हैं। उसकी माँ ने उसके लिये/ से आराम शोभा
कुछ लड्डू भेजे हैं। को देंगे।
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(गाना
राजा ने सभी रानियों को लड्डू खिलाये। सभी ने उसके स्वाद की प्रथांसा की।
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करभला हो भला
राजा ने लड्डू के डिब्बे में सोने की मोहरें भरकर पण्डित को दे|| मन ही मन पण्डितानी ने सोचादी। कुछ दिन बाद पण्डित घर आया तो पत्नी ने पूछा- ।
हैं ! यह क्या हुआ? लड्डू कैसे लगे, बहुत स्वादिष्ट थे लड्डू !
Amoll वह मी नहीं? महर हमारी बेटी ने खाये / बेटी ने क्या महाराज ने स्वयं
कहाँ चला गया? कि नहीं?
खाये और दिल खोलकर
प्रशंसा की।
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पण्डित ने कहा- हाँ, और एका यह सुनकर पण्डितानी कुछ सोचती रही। फिर बोलीखुशी की बात है, हम
वाह ! अब तो मैं बेटी को पीहर शीघ्र ही नाना-नानी
बुलाऊँगी, पहली सन्तान पीहर बनने वाले हैं।
में ही होती है न!
कुछ दिन बाद पण्डितानी के कहने पर ब्राह्मण आराम शोभा को लिवाने गया। पहले तो राजा ने मना किया पर बहुत जिद्द करने पर आखिर सैनिकों और सेवक सेविकाओं के साथ आराम शोभा को पीहर भेज दिया, वह उद्यान भी छत्र की तरह उसके साथ-साथ आया।
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कर भला हो भला सौतेली माँ ने आराम शोभा को मारने के लिए तीन बार विष भरा भोजन कराया, परन्तु हर बार यक्ष देव ने उसकी प्राण-रक्षा की | अन्त में उसने सोचा
इसने तीन बार के जहर को भी पचा लिया, इस बार ऐसा उपाय करूंगी कि सीधी मौत के मुँह में पहुंच जाये।
इसी बीच एक दिन आराम शोभा ने पुत्र को जन्म दिया। पण्डितानी ने बालक को देखा तो चकित होकर सोचने लगी
यह क्या? समूचा शयनकक्ष प्रकाश से जगमगा उठा। सचमुच यह
बड़ी मायाविनी है।
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| नाना बनने की खुशी में अग्निशर्मा ने पूरे गाँव में मोदक बाँटे। | पुत्र-जन्म के दसवें दिन उसकी माँ ने आराम शोभा से कहा- / बेटी ! अपने यहाँ रिवाज है ग्यारहवें।
दिन सुबह उठकर माता अकेली कुएँ में अपनी परछाईं देखती है। इससे सन्तान
दीर्घायु और निरोग रहती है।
माँ ! पुत्र के हित के लिए तुम जैसा कहोगी ___ वैसा ही करूंगी।
सरल हृदया आराम शोभा माँ का कपट नहीं समझ पाई।
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कर भला हो भला प्रातः मुँह अँधेरे ही अकेली आराम शोभा को लेकर वह कएँ। नागदेव तुरन्त प्रकट हुये और आराम शोभा को पर गई। आराम शोभा ने झुककर जैसे ही कुएँ में अपनी !
गिरने से पहले ही हाथों में उठा लिया। . परछाईं देखी, पण्डितानी ने पीछे से धक्का दे दिया। धम्म से
पुत्री ! तेरे जीवन को यहाँ वह कुएँ में गिर पड़ी। गिरते-गिरते ही उसने पुकारा
बहुत खतरा है, इसलिए
अब तू मेरे साथ चल। हे नागदेव ! रक्षा करो!
और वह उसे नागलोक ले गया।
नागलोक के दिव्यभवन में आराम शोभा को बिठाकर यक्ष बोला
यह मेरा भवन है, यहाँ तुम्हें किसी वस्तु की कमी नहीं है, प्रभु स्मरण करो और आनन्दपूर्वक रहो|Mola
आराम शोभा का दिव्य उद्यान भी साथ-साथ नागलोक आ गया।
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कर भला हो भला उधर सौतेली माँ ने तुरन्त अपनी बेटी को आराम शोभा की शय्या पर सुला दिया। जब दासियों ने उसको देखा, तो बोलीतुम कौन हो? हमारी स्वामिनी
कहाँ हैं?
अरे, अपनी स्वामिनी को नहीं पहचानतीं ! ये ही तुम्हारी स्वामिनी हैं। प्रसव के दोष का प्रभाव है। इसके कारण इसका रंग-रूप बदल गया है।
तब बड़ी दासी बोली
परन्तु आपका उद्यान कहाँ चला
गया?
कभी-कभी प्रसव-दोष के कारण देव रुष्ट हो जाते हैं तो ऐसा होता है, राजमहल में जाकर पूजा आदि करने
पर सब ठीक हो जायेगा।
चालीस दिन बाद राजा स्वयं आराम शोभा को लेने आया। नकली आराम शोभा को देखकर चौंक उठा
तुम कौन हो? मेटी प्रिया आराम शोभा कहाँ है?
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स्वामी ! मैं ही हूँ आपकी आराम शोभा। देव माया से मेरा रूप बदल गया है। उद्यान भी चला
गया है। यह प्रसव दोष है। कुछ म दिन बाद ठीक हो जायेगा।
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फिर पुत्र की तरफ सकत करके बोली
कर भला हो भला
राजा ने पुत्र को गोद में उठा लिया
सचमुच मेटा लाल देवकुमार जैसा है। मेरे 60 जैसा ही तेजस्वी! बड़ी-बड़ी आँखें। Ah
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यह देखिये न आपका लाल ! बिलकुल
पुत्र देखने की खुशी में राजा आराम शोभा के आपके जैसा ही तो है।
नकली रूप को भी भूल गया। | कुछ दिन बाद खूब धूम-धाम से जितशत्रु, पुत्र व उसकी नकली माँ को महलों में ले आया। राजा हर समय शंकित-सा रहता था। तुम्हारा रूप, स्वभाव,
हाव-भाव सब कुछ बदला-बदला है, सच्ची बताओ तुम कौन हो?
स्वामी ! क्या आप भी मुझ पर । विश्वास नहीं करते, मैं ही आपकी आराम शोभा हूँ। देव-दोष के कारण सभी मुझ पर सन्देह करने लग
गये? हाय ! मेरे भाग्य।
उसको रोती देखकर राजा का दिल पसीज गया। इधर असली आराम शोभा पाताल लोक में उदास-सी रहती। नागदेव ने कहा
1010 पुत्री ! यहाँ तुम्हें किसी बात का कष्ट है?
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देव ! एक माँ को अपने पुत्र का वियोग और पतिव्रता नारी को पति का विछोह इतना भारी कष्ट है कि इसके सामने सभी
सुख नगण्य हैं।
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कर भला हो भला नागदेव ने कहा- वहाँ भी तुम्हारी |
आराम शोभा ने कहाछोटी बहन रानी बनकर तुम्हारा स्थान ले चुकी है। यदि अब तुम वहाँ जाओगी तो उसका क्या
हाल होगा?
देव ! मुझे पति और पुत्र का वियोग मंजूर है, परन्तु मेरे कारण मेरी माँ और छोटी बहन दुःखी
हों ऐसा नहीं करूंगी।
कुछ दिन बीतने पर एक दिन उसे पुत्र की बहुत याद सताने लगी।। उसने नागदेव से कहा
देव ! पति न सही, मुझे कम से कम पुत्र का मुँह तो दिखा दीजिये।
नागदेव बोले
ठीक है ! मैं कल रात /तुम्हें राजमहल पहुँचा दूंगा, परन्तु
यदि तुम भोर होने से पहले वापस नहीं लौटीं तो तुम्हारे मूड़े से एक मृत सर्प गिटेगा और उस दिन से तुम्हारा
उद्यान नष्ट हो जायेगा।
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अगली सात नागदेव ने आराम शोभा को टाजमहल पहुंचा दिया। आटाम शोभा ने पुत्र को गोद में लिया, माया उद्यान के सुगन्धित फूल पालने में बिछा दिये।
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ऊँ, मेरा राजदुलारा कितना समय हो गया तेरा मुखड़ा देखे।
और प्रातः होने से पहले ही नागलोक वापस आ गई।
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सुबह उठकर राजा
हुए देखे तो पूछायह फूल कहाँ से आये ?
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कर भला हो भला
की शय्या पर फूल बिखरे
स्वामी ! ये मेरे ही उद्यान के हैं, रात फूल में मैं ले आई थी।
दूसरे दिन रात को राजा एकान्त में जाकर छुपकर बैठ गया। रात होने पर असली आराम शोभा आई । पुत्र को स्तनपान कराया, दुलारा, फूल बिखेर कर उसे सुला दिया। राजा ने देखा
अरे ! मेरी असली आराम शोभा तो यह है ? यहाँ जो सोई है वह तो कोई नकली है?
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तब तक आराम शोभा वापस आकाश में उड़कर चली गई।
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फिर उद्यान को ही क्यों नहीं ले आती?
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स्वामी ! कुछ दिन बाद वह भी ले आऊँगी।
राजा को नकली आराम शोभा की बातों पर शक हो गया। तीसरी रात फिर राजा एकान्त में छुप गया। आराम शोभा आई। पुत्र को स्तनपान कराकर जैसे ही वह जाने लगी, राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया
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प्रिये ! रोज आती हो और
मुझसे बिना मिले ही चली जाती हो? यह क्या रहस्य है? कहाँ छुपी हो? बताओ मुझे।
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आराम शोभा ने हाथ छुड़ाकर दोनों हाथ जोड़े
स्वामी ! मुझे जाने दो। मैं किसी के वचन में बँधी हूँ। फिर रहस्य का पर्दा उठने से अनर्थ हो जायेगा। इसलिए मुझे क्षमा करें और जाने दें।
प्रिये ! यह राज हठ समझ लो । तुम्हें बताना ही पड़ेगा।
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आराम शोभा
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ठीक है वचन देता हूँ।
आराम शोभा ने पिछली सब घटना सुनाकर कहा- राजा सुनकर क्रोध में तमतमा उठा ।
यह सब मेरी विमाता की कपट नीति है। अपनी पुत्री को रानी बनाने के लिए उसने इतना भारी जाल रचा है।
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नहीं स्वामी, आप सबको माफ कर देंगे। विमाता भी माता के समान है, अगर उसने मुझे घर से नहीं निकाला होता तो यह सब देव-कृपा नहीं मिलती ।
ठीक है स्वामी ! मैं आपको सब बताती हूँ, परन्तु पहले मुझे वचन दीजिये, मेरी कहानी सुनकर जैसा मैं कहूँगी वैसा ही करेंगे आप?
इस सब काली करतूत का दूँगा उसे ।
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कर भला हो भला कहानी सुनाते-सुनाते प्रातःकाल का सूर्य | राजा ने तुरन्त शीतल जल छिड़ककर नमोकार मंत्र सुनाया। आराम शोभा ने आँखें खोली। उदय हो गया। नागदेव के कथन अनुसार | तब तक सभी दासिया व नकली आराम शोभा भी जग गई। असली आराम शोभा को उसकी वेणी से एक मृत सर्प गिरा। | देखकर उसकी बहन थरथर काँपने लगी। उसने असली आराम शोभा के पाँव पकड लिये
हाय ! मृत सर्प,
अब सब कुछ समाप्त हो गया।
मुझे क्षमा कर
दो बहन!
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और वह मूर्छित हो गई। आराम शोभा ने कहा
महाराज ! इसे क्षमा कर दीजिये। अब मेरा भी माया उद्यान नष्ट हो गया है हम दोनों में कोई अन्तर
नहीं, दोनों ही आपकी हैं।
राजा मितशत्रु ने उसे क्षमा करते हुए कहा
तुम्हारा कपट तो बहुत कठोर दण्ड योग्य था, परन्तु तुम्हारी बहन की दया के कारण मैं तुम्हारे अपराध
को क्षमा करता हूँ।
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आराम शोभा अपने पति, पुत्र के साथ सुखपूर्वक महलों में रहने लगी। समय बीतने लगा। एक दिन द्वारपाल ने आकर खबर दी
महाराज, नगर के उद्यान में महाराज वीरभद्र पधारे हैं।
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वाह ! कैसा शुभ समाचार है। कल हम सब मुनिश्री के दर्शनों के लिये जायेंगे।
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अगले दिन पूरा राजपरिवार मुनिश्री के दर्शनों के लिये गया। प्रवचन सुनने के पश्चात् आराम शोभा ने पूछा-"गुरुदेव ! मेरे जीवन में इतने दुःख-सुख फिर दुःख आये, यह किन कर्मों का फल है।" आचार्यश्री ने उसका पूर्वजन्म सुनाते हुए कहा"तुम एक जन्म में कुलधर सेठ की आठवीं सन्तान थीं निर्भगा। वहाँ अपने पाप कर्मों के कारण पहले तुमने बहुत कष्ट सहे। फिर मणिभद्र सेठ का आश्रय पाकर तुमने धर्म आराधना की। अपनी धर्माराधना से तुमने मणिभद्र का सूखा उद्यान हरा-भरा करा दिया। मणिभद्र सेठ मरकर नागदेव (यक्ष) बना, तुम यहाँ अग्निशर्मा की पुत्री।
तुमने नागदेव को शरण-दान दिया। तुम्हारी इस परोपकार भावना व अभयदान की नवृत्ति के प्रभाव से इस जन्म में नागदेव ने तुम्हें माया उद्यान दिया।"
परोपकार का फल देर-सबेर अवश्य मिलता है। इसलिये कहते हैं-कर भला-हो भला।
समाप्त
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भगवान पार्श्वनाथ के प्रगट प्रभावक, असीम आस्थारूप, श्री उवसग्गहरं स्तोत्र की पावन अनुभूति करानेवाला, पोजीटीव एनर्जी के पावरहाउस समान, दिव्य और नव्य
पावनता का प्रतीक - पारसधाम.
SOHAM
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महानगरी मुंबई के हृदय समान घाटकोपर में पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. प्रेरित ,ज्ञान, ध्यान और साधना का एक अनोखा आधुनिक तकनीकी द्वारा तैयार किया गया धाम... पारसधाम..! पारसधाम... एक ऐसा धाम, जहाँ परमात्मा पार्श्वनाथ के दिव्य परमाणु और पूज्य गुरुदेव की अखंड साधना शक्ति के अध्यात्मिक Vibrations प्रतिपल प्रेरणा के साथ परम आनंद और परम शांति
की अनुभूति कराता है। के यहाँ मानवता की सपाटी से अध्यात्म के मोती तक की गहराई
मिलती है। यहाँ है महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं स्तोत्र की प्रभावक सिद्धीपीठिका जोमनवांछित फल देती है..! यहाँ है ऐसी कक्षाएं जहाँ Lookn Learn के बच्चे अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करते है। यहाँ है अध्यात्म ध्यान साधना की शक्ति का प्रतीकरूप पीरामीड साधना केन्द्र। यहाँ है शांतिपूर्ण विशाल प्रवचन कक्ष जहाँ संतो के एक एक शब्द
अंतर को स्पर्श करते हैं। + यहाँ है स्पीरीच्युअल शोप जहाँ उपलब्ध है अध्यात्म ज्ञान, साधना
और प्रवचन आदि की पुस्तकें और C.D.,V.C.D. ॐ यहाँ है एक अति आकर्षक आर्ट गैलेरी जहाँ आगम केरंगीन चित्रों की प्रदर्शनी आपके दर्शन को शुद्ध कर देगी।
महाप्रभावक श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथ परमात्मा की स्तुति के अखंड आराधक पूज्य गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा. की साधना के तरंगो से समृद्ध पारसधाम अध्यात्म की आत्मिक अनुभूति करानेवाला आधुनिक धाम है जो जैन समाज की उन्नति और प्रगति के लिए एक अनोखी मिसाल है।
यहाँ के नीति और नियम भी अपने आपमें विशेष महत्त्व रखते हैं।
यहाँ आनेवाली व्यक्ति को गुरुदर्शन और गुरुवाणी के लिए प्रथम 10 मिनिट ध्यान कक्ष में ध्यान साधना करके अपने मन और विचारों को शांत करना जरूरी है। तभी गुरुवाणी अंतरमे उतरेगी...!
मौन, शांति और अनुशासन यहाँकेमुख्य नियम हैं । यहाँ आनेवाले भक्तों का अनुशासन ही उनकी अलगपहचान है। पारस के धाम में पारस बनने के लिए आईए पारसधाम..!
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PARAS DHAM
Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai - 400 077. Tel : 32043232.
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________________ Look ( LOOR बुद्धिनिशान पूज्य गुरुदेव श्री नममुनि म.सा. की प्रेरणा से प्रकाशित JAIN EDUCATION BOARD आगम आधारित हिन्दी Comics LEARN LEARN प्रत्येक Comics अपनी एक मौलिक विशेषता के साथ प्रकाशित की जाती है। बच्चों के प्यारे गुरुदेव श्री नम्रमुनि म.सा.ने देखा कि जम्बकुमार आज के बच्चों को Comics पढ़ने में ज्यादा रूचि है | Comics अभयकुमार हाथ में आते ही खाना पीना भी भूल जाते हैं और एक ही बार में, पूरी पुस्तक पढ़ लेते हैं। यह देखकर बाल मनोविज्ञान के अभ्यासी पू. गुरुदेव ने सोचा अगर भगवान महावीर के आगम शास्त्र में जो दृष्टांत, सत्य घटना हैं उसे अगर Comics के रूप में प्रकाशित करें तो बच्चों को सहजता से जैनधर्म के आदर्श और वीर पात्रों के बारे में भी जानकारी मिल जायेगी / ऐसी उत्तम भावना से उन्होंने अब तक 30 Comics प्रकाशित करवाई हैं और इनकी सफलता देखकर और अनेक ऐसी Comics की पुस्तकें प्रकाशित करने के अजात शत्रु कोणिक भाव हैं। आगम के श्रेष्ठ पात्रों को बच्चों तक पहुँचाने का श्रेष्ठत्तम माध्यम है यह सचित्र साहित्य। 50 रूपये वाली ये सचित्र Comics दाताओ के - अनुदान से और ज्ञान प्रसार के भाव से आप मात्र 20 रूपये में प्राप्त कर सकते हैं। शासन प्रभावक पूज्य गुरुदेव श्री नममुनि म.सा. की प्रेरणा से लुक अन लर्न जैन एज्युकेशन बोर्ड प्रस्तुत करता है निम्नलिखित सचित्र साहित्य..! * बुद्धिनिधान अभयकुमार * रूप का गर्व भगवान मल्लीनाथ किस्मत का धनी धन्ना * अजात शत्रु कोणिक * वचन का तीर * नन्द मणिकार * भगवान ऋषभदेव * भरत चक्रवर्ती * तृष्णा का जाल *उदयन वासवदत्ता भगवान महावीर की * पाँच रत्न पिंजरे का पंछी कर भला हो भला बोध कथाएँ क्षमादान * महासती अंजनासुन्दरी |* सद्धाल पुत्र राजा प्रदेशी और युवा योगी जम्बू कुमार |* महासती मदन रेखा - राजकुमारी चन्दनबाला| केशीकुमार श्रमण * करनी का फल * धरती पर स्वर्ग * करकण्डू जाग गया * आर्य स्थूलभद्र राजकुमार श्रेणिक सुर सुन्दरी * महाबल मलया सुन्दरी* ऋषिदत्ता पत्रिका मंगवाने के लिए सदस्यता शुल्क अर्हम युवा ग्रुप के नाम से चेक / ड्राफ्ट द्वारा निम्न पते पर भेजे / LOOK N LEARN : PARASDHAM, TEL.: 022-32043232 Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai - 400 077.