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पड़ोसियों के बार-बार आग्रह करने और विद्युतप्रभा पर पड़ी काम की जिम्मेदारी को देखते हुये पण्डित अग्निशर्मा ने दूसरा विवाह कर लिया।
एक वर्ष बाद नई माँ को एक कन्या हुई। विद्युतप्रभा उससे बहुत प्यार करती। हर समय गोदी में लिए खिलाती रहती।
मेरी प्यारी-सी बहना,
कर भला हो भला
तेरा चन्दा-सा मुखड़ा।
नई-नवेली पत्नी स्वभाव से बहुत तेज थी। वह घर में बनठन कर महारानी-सी बैठ जाती और विद्युतप्रभा को नौकरानी की तरह दिन-रात काम में लगाये रखती। ऊपर से डाँटती भी रहतीअरी निठल्ली ! मन भर खाती है और सेर भर काम नहीं करती
विद्युतप्रभा सौतेली माँ के व्यवहार से बहुत दुःखी रहती। परन्तु समझदार थी इसलिए चुपचाप सुनती और काम में लगी रहती । एक दिन विद्युतप्रभा गायें लेकर जंगल में चराने जा रही थी। खाने का भात बाँधने लगी तो माँ ने डाँट दिया।
पेटू कहीं की, दिन भर
खाना खाना ही दिखता है। देख गायें चली जा रही हैं और तू खाना बाँधने में लगी है।
सौतेली माँ की डाँट सुनकर विद्युतप्रभा का मन दुःखी हो गया। वह खाना छोड़कर भूखी ही गायों के पीछे चल दी।
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