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कर भला हो भला सौतेली माँ ने आराम शोभा को मारने के लिए तीन बार विष भरा भोजन कराया, परन्तु हर बार यक्ष देव ने उसकी प्राण-रक्षा की | अन्त में उसने सोचा
इसने तीन बार के जहर को भी पचा लिया, इस बार ऐसा उपाय करूंगी कि सीधी मौत के मुँह में पहुंच जाये।
इसी बीच एक दिन आराम शोभा ने पुत्र को जन्म दिया। पण्डितानी ने बालक को देखा तो चकित होकर सोचने लगी
यह क्या? समूचा शयनकक्ष प्रकाश से जगमगा उठा। सचमुच यह
बड़ी मायाविनी है।
कान
| नाना बनने की खुशी में अग्निशर्मा ने पूरे गाँव में मोदक बाँटे। | पुत्र-जन्म के दसवें दिन उसकी माँ ने आराम शोभा से कहा- / बेटी ! अपने यहाँ रिवाज है ग्यारहवें।
दिन सुबह उठकर माता अकेली कुएँ में अपनी परछाईं देखती है। इससे सन्तान
दीर्घायु और निरोग रहती है।
माँ ! पुत्र के हित के लिए तुम जैसा कहोगी ___ वैसा ही करूंगी।
सरल हृदया आराम शोभा माँ का कपट नहीं समझ पाई।