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कर भला हो भला अगले दिन निर्भगा उद्यान में जाकर पौषधशाला में बैठ गई। उसने संकल्प लिया
जब तक मेरे धर्मपिता का यह संकट दूर नहीं होगा, चारों
आहार का त्याग है।
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और वह नमोकार मंत्र का अखण्ड जप करने लगी।
तीन दिन, तीन रात बीतने को हुये। तीसरी रात के अन्तिम प्रहर में अचानक पूर्व दिशा में शासन माता चक्रेश्वरी का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। रुन-झुन घुघल की मधुर झंकार होने लगी। एक दिव्य ध्वनि गूंजी
( पुत्री ! मैं तेरे अखण्ड शील और कठोर तप से प्रसन्न हूँ। बोलो, क्या चाहती हो?
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निर्भगा ने कहा
माता ! मेरे धर्मपिता सेठ मणिभद्र पर अचानक संकट आ पड़ा है इसे दूर करिये।
तथास्तु ! जा यह उपद्रव
शान्त हो जायेगा।
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