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कर भला हो भला कुछ दिन तो वह चुपचाप रही। परन्तु उसके पेट में यह बात परन्तु उसका मन भुआजी की रत्न-मंजूषा में उछलने लगी। एक दिन एकान्त में उसने कुलधर से कहा- | | फँस गया। वह हर समय दूध पर ताक लगाई भुआजी बेसहारा बनकर हमारी रोटियाँ खा ) नहीं, नहीं, किसी का धन चुराना
बिल्ली की तरह रहती। एक रात कुलानन्दा को रही हैं। उनके पास तो अमूल्य रत्न हैं। अगर प्राण-हरण से भी भयंकर पाप है।
मौका मिल गया। वह भुआजी के कमरे में आई। हम उन्हें ले लें तो हमारी सब पुत्रियों का / हम ऐसा पाप नहीं करेंगे, तुम,
वाह ! भुआजी सोई हुई हैं। मैं विवाह धूमधाम से हो जायेगा। ऐसा सोचो भी मत
चुपचाप रत्न-मंजूषा ले जाती हूँ। किसी को पता भी नहीं चलेगा।
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यह सुनकर कुलानन्दा चुप हो गई।
वह पेटी उठाकर दबे पैर वापस आ गई। प्रातः भुआजी उठीं। पेटी दिखाई नहीं दी तो छाती पीटती हुई गला | फाड़कर रोने लगीं। कुलधर दौड़कर आया और पूछा, भुआजी बोली
वह अपनी पत्नी की कारस्तानी समझ चुका था। वापस लौटकर उसने
पत्नी को समझाया। बहुत समझाने-बुझाने पर कुलानन्दा ने कहाअरे ! मेरा सब कुछ भुआजी! आप चिन्ता मत लुट गया। कोई मेरी पेटी करिये। चोर का पता शीघ्र ही || हाँ ! पेटी तो मैंने ही चुराई है, पर मैं इससे अपनी सातों बेटियों उठाकर ले गया। मेरे तो लगा लेंगे फिर यहाँ आपको || का विवाह धूमधाम से करुंगी"फिर आप कमाकर भुआजी की प्राण उसी में थे। अब मैं क्या कमी है? रोटी, कपड़ा सब | सम्पत्ति वापस लौटा देना। मुझे किसी का धन हड़पना नहीं है,
कैसे जीऊँगी। ५) कुछ तो मिल ही रहा है। किन्तु अपनी पुत्रियों का विवाह तो करना है।
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कुलधर ने भुआजी को सांत्वना दी।
कुलधर तो जैसे दो पाट के बीच फँस गया।