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________________ प्रस्तावना अध्यात्म जगत् का एक सर्वमान्य सिद्धान्त है - सुख और दुःख का देने वाला आत्मा स्वयं ही है-अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य । व्यवहार जगत् में भी हम यही देखते हैं अपने किये हुए कर्मों के कारण प्राणी को सुख-दुःख मिलते हैं। यदि हम सेवा, परोपकार, अभयदान जैसे परोपकारी कर्म करते हैं तो उनका शुभ फल और हिंसा, कपट, दूसरों का धन हरण आदि अशुभ कर्म करते हैं तो उनके बुरे परिणाम हमें भुगतने ही पड़ते हैं। कर्म करते समय मनुष्य अनजान - सा रहता है, परन्तु फल-भोग के समय उसे अपने किये कार्यों पर पछतावा और प्रसन्नता अवश्य होती है। COCCO आराम शोभा की कथा में इसके पूर्व जीवन के प्रसंगों में उसके पिता कुलधर द्वारा किया गया अपनी भुआ जी का धन-अपहरण एक सामान्य घटना भले ही हो, परन्तु उसी के पाप-फलस्वरूप अकस्मात् धन-हानि, दरिद्रता जैसे कटु फल प्राप्त हुए। सेठ मणिभद्र द्वारा प्रदत्त आश्रय को निर्भगा द्वारा एहसान मानकर उसके सूखे उद्यान को अपनी तपस्या के प्रभाव से हरा-भरा बना देना, नाग को अभयदान देकर उसकी रक्षा करना जैसे परोपकारी कर्मों का फल उसे अनेकानेक सुखों के रूप में प्राप्त हुआ। प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान LOOK LEPAN Jain Education Board PARASDHAM मूल्य : २०/- रु. Vallabh Baug Lane, Tilak Road, Ghatkopar (E), Mumbai- 400077. Tel : 32043232.
SR No.006283
Book TitleKar Bhala Ho Bhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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