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दो-तीन वर्ष बाद एक दिन दोपहर के समय विद्युतप्रभा उद्यान में सोई थी। उस समय उस देश का राजा जितशत्रु अपने सैनिकों के साथ उधर से निकला। उद्यान देखकर राजा को आश्चर्य हुआ
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वाह ! क्या रूप है? कौन है यह देवकन्या ? रोको उसे ।
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इस मरुस्थल जैसे जंगल के
बीच इतना सुन्दर उद्यान ? हम यहीं विश्राम करेंगे।
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राजा तथा सैनिकों ने उद्यान में पड़ाव डाल दिया।
राजा ने दौड़ती विद्युतप्रभा को देखा तो उसका | अपूर्व सौन्दर्य देखकर मुग्ध हो गया
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राजा के हाथी-घोड़ों के डर से गायें भागने लगीं। विद्युतप्रभा की नींद खुल गई। वह अपनी गायों को पकड़ने भागी तो उद्यान भी उसके पीछे-पीछे भागने लगा। राजा चकराया, मंत्री से पूछा
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मंत्रिवर, यह क्या माया है ? उद्यान भाग रहा है? जहाँ हम
| वृक्षों की छाया में बैठे थे वे वृक्ष चले गये, धूप चमकने लगी।
सैनिकों ने दौड़कर विद्युतप्रभा को रोका। राजा मंत्री पास आये। मंत्री ने पूछा
यह हमारे देश के महाराज जितशत्रु हैं। आज इस उद्यान में पधारे हैं, आपका परिचय जानना चाहते हैं?
महाराज ! वह देखिये कोई देवकन्या या नागकन्या जा रही है। उसके पीछे-पीछे समूचा उद्यान दौड़ रहा है।
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