Book Title: Kar Bhala Ho Bhala
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 13
________________ कर भला हो भला | लेटे-लेटे नन्दन के मन में विचार उठा सोचते-सोचते नन्दन एकदम खड़ा हुआ। उसने नौकटी में जितना मिलता हैं उसमें मेरा गुजारा भी ठीक | पोटली उठाई निर्भगा को सोई छोड़कर भाग छूटा। से नहीं होता, इसका गुजारा कैसे चलेगा? इसे देखकर मालिक कहीं मुझे ही नौकरी से न निकाल दे? यह सोई। हुई है। छोड़कर चला जाऊँ तो इसे पता भी नहीं चलेगा। 2000 प्रातःकाल निर्भगा उठी। नन्दन को वहाँ | थोड़ी देर तो वह इधर-उधर घूमकर नन्दन को देखती न देखकर उसने आवाज लगाई- रही। फिर निराश होकर बैठ गई और सोचने लगी मेरी तकदीर में सुख नहीं है तो कोई कैसे सुखी कर सकेगा। माता-पिता ने भार समझकर घर से निकाल दिया, पति ने बोझ समझकर छोड़ दिया। अरे! स्वामी अब कौन सहारा है मेरा, कहाँ ठिकाना है? कहाँ हैं आप? कुछ देर सोचकर वह मन्दिर के सामने की पगडण्डी पर चल पड़ी/ चलती-चलती | नगर में पहुंची। एक सुन्दर से विशाल भवन पर नमोकार मंत्र लिखा देखकर, | भद्रे ! तुम कौन हो और खड़ी-खड़ी हाथ जोड़कर नमोकार मंत्र पढ़ने लगी। तभी भवन में से सेठ मणिभद्र यहाँ किसलिए खड़ी हो? निकले। भक्ति पूर्वक हाथ जोड़े एक युवती को देखकर सेठ ने पूछा णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवमझायाणं णमो लोए सव्व साहूर्ण

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