Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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नदी पार नहीं करना यह उत्सर्गमार्ग है। संयम और देह की रक्षा के लिए नदी पार करना नौका में बैठना अपवादमार्ग है। (वि.चू)
साधु को किसी भी प्रकार की देहचिकित्सा करना निषिद्ध है, यह उत्सर्गमार्ग है। किंतु संयम की रक्षा हेतु असहिष्णु व्यक्ति यदि वैद्य आदि से चिकित्सा करवाता है तो यह अपवादमार्ग है। सारांश यह है कि संयम की रक्षा के लिए दोनों मार्ग उपादेय है, स्वीकार्य है। (वि. चू) कप्पसुत्त___ कल्पसूत्र के दो विभाग है। 'चुल्लकप्पसुय' और 'महाकप्पसुय' उसी प्रकार 'कप्पियाकप्पिय' भी उत्कालिक आगम है। ये सभी प्रायश्चित्त विधायक आगम है। जो वर्तमान में अनुपलब्ध है, विच्छिन्न हो गये हैं। प्रस्तुत कल्पसूत्र का मूल पाठ गद्य है। इस में ८१ विधि-निषेध कल्प है। ये सभी कल्प पांच समिति और पांच महाव्रतों से संबंधित है। (वि. चू)
इस सूत्र पर संघदास गणि ने ६००० गाथा प्रमाण लघुभाष्य की रचना की। लघुभाष्य की गाथाओं में उन्होंने नियुक्ति गाथाओं को तथा पुरातन गाथाओं का भी समावेश कर लिया है। इस सूत्र पर किसी अज्ञात आचार्य ने बृहद्भाष्य की भी रचना की है।
प्रस्तुत बृहत्कल्प(कप्पसुत्त) और वर्तमान में पर्युषण पर्व में वाचन किया जाने वाला कल्पसूत्र एक है या भिन्न है यह आशंका स्वाभाविक है। पर्युषण पर्व में वाचन किया जाने वाला कल्पसूत्र 'कालिक' है। आचारदशा अर्थात् दशाश्रुतस्कंध का आठवां अध्ययन पर्युषणा कल्प है। इस में केवल वर्षावास की ही समाचारी है। इस पर्युषणा कल्प के पूर्व मंगल स्वरूप तीर्थंकरों के जीवन चरित्र तथा स्थविरावलि है। वर्तमान में यही पर्युषणा कल्प जनसाधारण में कल्पसूत्र नाम से प्रचलित है जो प्रत्येक पर्युषणपर्व में आदर के साथ पढा जाता है।
प्रस्तुत कल्पसूत्र को वर्तमान जनप्रसिद्ध कल्पसूत्र से भिन्न बताने के लिए ही प्रस्तुत कल्पसूत्र का नाम 'बृहत्कल्प' सूत्र दिया हो ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि- कल्पसूत्र के पीछे बृहत् शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं मिलता। छेदसूत्रों के कर्ता
छेदसूत्रों के रचयिता कौन है यह भी एक उलझा हुआ विचारणीय प्रश्न है। यह भी एक परंपरा है कि छेदसूत्र के रचयिता श्रुतकेवली आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी है जिनका समय इसवी सन ३०० पूर्व का माना गया है। आ. भद्रबाहु स्वामीने तो भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित छेदसूत्रों को सूत्ररूप में ग्रंथित किया है। अतः छेदसूत्रों के अर्थागम प्ररूपक सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान स्वयं थे और सूत्रागम के निर्वृहक आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी थे। इसका स्पष्ट निर्देश आचारदशा अध्ययन-१० सूत्र-५४ में है।
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