Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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भासगाहा-२६९८-२७१२] पढमो उद्देसो
३११ "वायाए०" गाहा । कण्ठ्या । उवे हाए इमं दोसे उदाहरणं-किंचि तलायं वणसंडपरिक्खित्तं । तत्थ य हत्थिजूहं महल्लं परिवसइ । मिय-पसु-पक्खिसहियाणि य जलयरथलयराणि सत्ताणि बहूणि अतीताणि । तत्थ य सरडाए भंडिया । तत्थ देवयाए भणियं -
नागा ! जलवासिया !, सुणेह तस-थावरा ! । सरडा जत्थ भंडंति, अभावो परियत्तई ॥२७०६॥ वणसंड सरे जलथलखहचर वीसमण देवया कहणं ।
वारेह सरडुवेक्खण, धाडण गयनास चूरणया ॥२७०७॥
"नागा०" ["वणसंड सरे०"] गाहा । कण्ठ्या । तत्थ जलवासिणो थलवासिणो य भणंति–किं काहिंति अम्ह सरडा ? उवेहं करेंति । तत्थ सरडो सरडेण धाडिज्जमाणो सुत्तस्स हत्थिस्स सोंढं' पविट्ठो, बिलं ति मन्नमाणो । इयरो बितिएणं नासापुडेणं । तओ तत्थ हत्थिस्स महइ अरइं दुक्खं च जायं । ताहे तेण तं वणसंडं सव्वं उच्चाइयं, तं च तलायं सव्वं भग्गं । एवं साहुस्स उवेहं करेमाणस्स महादोसो उप्पज्जइ । ते पिट्टापिट्टि करेज्ज, पक्खापक्खीए राउलेणं च निच्छुभण-कडगमद्दो-सव्वे एतारिस त्ति काउं । किं च -
तावो भेदो अयसो, हाणी सणचरित्तनाणाणं । साहुपदोसो संसारवड्ढणो साहिकरणस्स ॥२७०८॥ [नि०] "तावो भेदो०" गाहा । अस्य व्याख्याया गाहात्रयम् ।
अइभणिय अभणिए वा, तावो भेदो उ जीव चरणे वा । रूवसरिसं न सीलं. जिम्हं व मणे अयस एवं ॥२७०९॥ अक्कुट्ठ तालिए वा, पक्खापक्खि कलहम्मि गणभेदो । एगयर सूयएहिं व, रायादीसिढे गहणादी ॥२७१०॥ वत्तकलहो वि न पढइ, अवच्छलत्ते य दंसणे हाणी । जह कोहाइविवड्डी, तह हाणी होइ चरणे वि ॥२७११॥ अकसायं खु चरित्तं, कसायसहितो न संजओ होइ । साहूण पदोसेण य, संसारं सो विवड्डेइ ॥२७१२॥ “अइभणिय०" ["अकुट्ठ तालिए०" "वत्तकलहो०" "अकसायं०"] गाहा ।
१. सोत्रं अ ब क इ । सौं ड । २. द्वयम् क ।
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