Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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भासगाहा-२८६१-२८६९] पढमो उद्देसो
३४५ भिक्खू वसभाऽऽयरिए, वयणं गच्छस्स कुलगणे संघे । गुरुगादऽइक्कमंते, जा सपद चउत्थ आदेसो ॥२८६३॥ पेच्छह उ अणायारं, रत्तिं भुत्तुं न कस्सइ कहति । एवं एक्केक्कनिवेयणेण वुड्डी उ पच्छित्ते ॥२८६४॥ को दोसो ? को दोसो ?, त्ति भणंते लग्गई बिइयठाणं । अहवा अभिक्खगहणे, अहवा वत्थुस्स अइयारो ॥२८६५॥
"भिक्खू वसभा०" ["पेच्छह उ०" "को दोसो०"] गाहा । ते भोत्तूण आगया। जहावत्तं आयरियाण आलोएंति । तओ भिक्खूहिं भणियं-दु? कयं भे अज्जो ! जं रत्ती भुत्तं । तओ ते भणंति-चंदुज्जोवे को दोसो? अप्पपाणे य फासुए दव्वे । एवं तेहिं उत्तरे भणिए तओ भिक्खुणो पुणो ते इमं भणंति -
जइ वि य फासुगदव्वं, कुंथूपणगाइ तह वि दुप्पस्सा । पच्चक्खनाणिणो वि, हु राईभत्तं परिहरंति ॥२८६६॥ जइ वि य पिपीलियाई, दीसंति पईव जोइउज्जोए ।
तह वि खलु अणाइन्नं, मूलवयविराहणा जेणं ॥२८६७॥ ___ "जइ वि य०" ["जइ वि य पिपीलियाइ०"] गाहाद्वयं कण्ठ्यम् । एवं भिक्खूहिं भणिए जइ सम्मं आउटुंति चउगुरुए चेव ठिया । अह अइक्कमति ::: ६। (षडलघु), तओ वसभेहिं भणिया-मा भिक्खुणो अइक्कमह, जइ सम्म आउटृति छल्लहुए चेव ठिया, अह अइक्कमंति :::। ६। (षड्गुरु) । तओ आयरिएण भणिया-मा वसभे अइक्कमह, जइ सम्माउट्टा छग्गुरुए चेव ठिया, अह अइक्कमति छेदो । तओ कुलथेरेण भणिया । जइ सम्मं आउट्टा छेदे चेव ठिया । अह अइक्कमंति मूलं । एवं गणथेरेण वि अणाउट्टा अणवट्ठा, संघथेरेण पारंचिया। अभिक्खगहणेण सत्तहिं वाराहिं चरिमं ।
बिइयादेसे भिक्खू, भणंति दुट्ठ में कयं ति बोलेंति । छल्लहु वसभे छग्गुरु, छेदो मूलाइ जा चरिमं ॥२८६८॥ तइयादेसे भोत्तूण आगया नेव कस्सइ कहिंति । तेसऽन्नतो व सोच्चा, खिसंतऽह भिक्खुणो ते उ ॥२८६९॥
१. एषा गाथा विशेषचूर्णिकृता न व्याख्याता ।
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