Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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३४४ विसेसचुण्णि
[ राईभत्तपगयं जहावत्तं । तहा आयरिएण भणियं-दुट्ठ कयं भे ! तओ पडिभणंति-तुब्भं सूरपगासिए रागो, चंदपगासिए दोसो, जं सूरुज्जोवं निदोसं मन्नह चंदुज्जोवं सदोसं । एवं तेसिं भयंताणं :::। ६ (षड्गुरु) । तओ वसभेहिं भणिया-मा अज्जो ! गुरुवयणं अइक्कमह । जइ सम्म आउटुंति छग्गुरुए चेव ठिया, अह नाउबँति छेदं पावंति । तओ कुलथेरेण भणिया-मा अज्जो ! वसभे अइक्कमह । जइ सम्मं आउटुंति तो छेदे चेव ठिया, अह ण आउटृति मूलं पावंति । तओ गणथेरेणं' भणिया-मा अज्जो ! कुलथेरे अइक्कमह । जइ सम्मं आउटृति मूले चेव ठिया, अधरे नाउ,ति अनवटुं पावंति । तओ संघ-थेरेहिं भणिया-मा अज्जो ! गणथेरे अइक्कमह । जइ सम्म आउट्टा अणवढे चेव ठिया, अह नाउद॒ति पारंचियं पावति । आरोवणा कायव्वे त्ति गयं ।
'बिइया वि अभिक्खग्गहणेणं'ति अस्य व्याख्या । “एक्कसि०" गाहा । एक्कसि जइ भुंजइ ::। ४ (चतुर्गुरु), दो वारा जइ भुंजइ :::। ६ (षड्गुरु), तइयं वारा छेदो, चउत्थं वारा मूलं, पंचमं वारा अणवट्ठो, छटुं वारा पारंचिओ । चोअओ भणइ-किं कारणं कुलथेर-गणथेर-संघथेरवयणं अइक्कमंताणं गुरुयतरं पच्छित्तं ? अत उच्यते -
तिहिं थेरेहिं कयं जं, सटाणे तं तिगं न वोलेइ । हेट्ठिल्ला वि उवरिमे, उवरिमथेरा उ भइयव्वा ॥२८६१॥ भिक्खुणो अतिक्कमंते, छल्लहुगा वस) होति छग्गुरुगा ।
गुरुकुलगणसंघाइक्कमे य छेदाइ जा चरिमं ॥२८६२॥
"तिहिं०" ["भिक्खुणो अतिक्कमंते."] गाहा । एए तिन्नि थेरा आयरियातो वि गुरुययरा पमाणपुरिसा ठविय त्ति काउं गुरुययरं पच्छित्तं । अस्य व्याख्या-जं कुलथेरेण कयं तं कुलं णाइक्कमइ । गणथेरेण कयं तं गणो नाइक्कमइ । संघथेरेण कयं तं संघो णाइक्कमइ । एयं सट्ठाणे त्ति हेठिल्ला उवरिमे त्ति । गणरेण कयं कुलथेरो कुलं च णाइक्कमइ, संघथेरेण कयं कुलथेरो कुलं च णाइक्कमइ, एवं गणथेरो गणो य णाइक्कमइ । 'उवरिमथेरा उ भइयव्वा' त्ति, कुलथेरेण कयं गणथेरो तहा वा अन्नहा वा करेज्ज । एवं संघथेरो वि गणथेरेण कयं संघथेरो तहा वा अन्नहा वा करेज्ज।
इयाणिं अन्ने वि दो पायच्छित्तपगारा भणिउकामो आयरिओ इमं सूत्रमाह -
१. मलयवृत्तौ षड्लघु आरभ्य पाराञ्चिकपर्यन्तः प्रायश्चित्तनिर्देशः । तत्र वृषभानन्तरम् आचार्यस्थानम् अधिकं निर्दिष्टम् । २. संघगणथेरेणं ब । ३. अहुणा ड । ४. एक्कसिं गाथा मुच नास्ति।
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