Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 7
________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५ ।। Jain Education International ते पुस्तक क्यारे छपाइने बहार पडे ? लेखक अने आर्थिक सहायको केटली धीरज राखे ? अने एकला प्रेसवाला अने प्रुफरीडर पंडितने भरोसे पण काम केम छोडाय ? भावनगर वा अमदावादमां एवा कोइ विद्वान साधुनुं चोमासुं होय के जो आ काम करवामां योग्य अने करवानी भावनावाला होय तो पुस्तक अमदावाद छपाववुं ए विचारणा चालती हती एटलामां तपस्वी पं० श्रीकान्तिविजयजी गणिनो पत्र मल्यो, तेमणे जणाव्युं के "अमारुं चोमासुं बीजे नक्की थइ गयुं हतुं पण शारीरिक कारणे डाक्टरनी सलाहथी अमदावाद आव्या छीये." अमने प्रसन्नता थइ अने पूछयुं के " जो शारीरिक अडचण न होय अने कलिकानुं मुद्रण कार्य संभाली शकाय तेम होय तो ए कार्य हुं तमने सोंपवा इच्छं छु” अमारा आ पत्रनो उत्तर पं० कान्तिविजयजीए स्वीकृतिना रूपमा आप्यो एटले प्रथम खंडना केटलाक परिच्छेदो तेमने मोकली आप्या अने आर्थिक सहायकोने सूचना पहोचतां खर्च माटे रकम पण अमदावाद श्रीविद्याशालानी पेढीमां पहोंची इ. कार्य चालु थयुं अने गत वर्षनो कार्तिक उतरतां १० फर्मा छपाया, पण एटलामां पं० श्रीकांतिविजयजीने विहार करवाने प्रसंग आव्यो एटले अमारी सूचना प्रमाणे संपादननु कार्य तपस्वीप्रवर मुनि श्रीभद्रंकरविजयजीने सोंपायुं अने ते पछी आनुं बधुं ज संपादकीय कार्य उक्त मुनिराजे ज कर्तुं छे. आ बने विद्वान मुनिवरोए कलिका प्रति श्रद्धा अने सेवाभाव बताव्यो छे तेथी अमने पूर्ण संतोष छे. अग्रसहायको - 'कलिका' नुं कार्य पूरुं नहोतुं थयुं ते पहेलांथी लोको एना मुद्रणमां सहायक थवा माटे अमुक नकलोनी लागत किम्मत आपी ग्राहक रूपे पोतानां नामो लखाबवा मांगता हता, परन्तु ए काम ग्रन्थनुं मेटर पूरुं थया पहेला थइ शके तेम न हतुं. ज्यारे बने भागोनी प्रेसकोपी थवा मांडी प्रेसथी मुद्रण विषयमां पूछपरछ करी लीधी, ते पछी अनुमानथी जणायुं के प्रथम तथा द्वितीय भागनी पांच पांचसो कोपीओ कढावतां अनुक्रमे रु.५) तथा रु.१०) नी लागत किम्मत आवशे, प्रथम भागनो पूरो खर्च श्रीगोदण (मारवाड) ना जैन संघ For Private & Personal Use Only ॥ प्रस्ता बना || ॥ ५ ॥ www.jainelibrary.org

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