Book Title: Kalyan Kalika Part 2 Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor View full book textPage 6
________________ ।। प्रस्ताबना ॥ ॥ ४ ॥ - अपेक्षाए कंइक ज उतरतो छ, बने विषयनो स्पर्शतुं नाम आपवामां पण कंइक ग्राम्यता जेवू लाग्यु एटले आ ग्रन्थने निर्नामक ज राखीने || कल्याण- विधिविषयक ग्रन्थने पूर्ण करवानो निर्णय कर्यो अने ए भाग पण बनते प्रयासे पूरो करी दीयो. कलिका. बीजो भाग बीजा भागना एक परिच्छेद जेबो ज छे पण अधिक विस्तृत भिन्न भिन्न विषयात्मक होवाथी पांच परिच्छेदमा बहेंची खं०२॥ एनो एक स्वतंत्र खंड बनान्यो छे. बीजा त्रीजा खंडनी योजना अने काचो खरडो तैयार थइ गया पछी पाछी एना नामनी विचारणा इभी थइ, बीजा भागना नामने अंगे तो बहु विचारचातुं न हतुं, प्रतिष्ठाकल्प अथवा एने मलतुं बीजु कोइ माम आपबाथी समस्या पती जाय तेम हतुं, पण खास मुंजवण प्रथम खंडने अंगे हती, अमारे आ पहेलो भाग स्वतंत्र ग्रन्थरूपे नहि पण कोइ ग्रन्थना एक विभाग रूपे गोठववो हतो, जो विधिखंडनी प्रधानता गणी तेने अनुसरतुं कोइ नाम आपीयो ते प्रथम खंड तद्दन ज अनिर्दिष्ट रही जाय तेम हतुं एटले अमुक विषय सूचक नामने as पडतुं मूकी फलसूचक नामनी तरफ लक्ष्य दोर्यु अने तरत ज "कल्याण कलिका" नाम उपस्थित थयुं अने एज नाम करण नियत थयुं. साइजने अंगे-आखो ग्रन्थ एकलो छपाववानो निश्चय हतो पण साइजनी बाबतमां विचार करतां जणायु के कोइ पण एक साइजमां छपावतां बधाने अनुकूल नहिं पडे, बुक साइजमा होय ते विधि करावनारने अगवडता जनक थाय अने पोथी साइजमां होय ते शिल्प तथा ज्योतिषना अभ्यासीओने अनुकूल पडे नहि, ए कारणे प्रथम खंड बुक अने बीजो खंड भेगा पोथी रूपे छपाववानुं निश्चित करायु. मुद्रण कामनी व्यवस्था मुद्रण कार्य जल्दी थइने पुस्तक वहेलुं बहार पडे एवी अमारी इच्छा होय ए तो स्वाभाविक गणाय, पण द्रव्य सहायकोनी उतावल ANS अमारा करताये अधिक हती, पण आटलुं दलदार पुस्तक भावनगर के अमदावाद प्रेसमां छपाय अने अमे मारवाडमां प्रुफ मंगावीने सुधारीये बाला ate ने थाला थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 660