Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 511
________________ 322 कल्पलताविवेके अविरोधी विरोधी वा [का. 86 20 | आसधितोऽपि 80] 178 27 | आलस्यं त्वभिनेयं [भ ना.शा. 291 9 अविवक्षितवाच्यस्य [ध.का. 57] 155 27 | 7 48] अव्युत्पत्तिकृतो दोषः [व का 62- 170 1 | आलस्याद्दौर्बल्यात् [भ.ना.शा. 297 18 ... तम्यामुदाहृतः परि. श्लो.] 7 71] अव्युत्पत्तेरशक्तेर्वा [व.का 55] 155 5 | | आलोकार्थी यथा- [ध का. 9] 113 3 अश्वक्रान्ता तु षष्ठी- [भ. ना. शा. 33 3 आशीर्वचनसंयुक्ता [भ. ना शा 38 21 अ. 28 श्लो. 28] 5 24] अष्टौ पुत्र कुरु श्लोकान् . 77 12 | आश्चर्यवद भिख्यानं [ भ.ना शा... 89 18 असमासा समासेन [ध.का. 61] 167 19 21 54] असंलक्ष्यक्रमोद्योतः [ध.का. 24) 126 17 आश्रावणायां युक्तायां [भ.ना.शा] 40 6 असोढा तत्कालोल्लसद- 130 12 आसन् सवितुरत्युष्णाः अस्ति शक्तिनिजा काचित् आसीन्नाथ 118 8 अस्ति स्वकर्मनिरतप्रकटप्रमोद- 30 3 | आहारविपरिणामाद् [भ ना.सा 298 17 अरत्येव निर्विरोधस्वम् 85 10 अस्थाने तस्करान् दृष्टवा [भ.ना शा. 292 8 2284 इति काव्यार्थविवेको 173 5 अस्याङ्गानि तु कार्याणि [भ. ना. शा. 35 15 इति द्वयैकानुगतिव्यावृत्ती इति इति नैवेतरेषाम् 22 15 अस्वगोण्यादयः [वा प.ब्र.का. इतिवृत्तयशायातां [ध्व. उ 3] 88 22 15. हरिः] [का 67] 173 12 अहअं उज्जुअरूआ 119 25 | इत्थं स्थितिवरार्था च 119 7 अहवा पयाणि ठविउं 199 4 इत्येकशः प्रतिदिनं [ नागा. 4 6] 25 10 अहो संसारनैपुण्य इत्येतन्मरणं प्रोक्तं [भ ना.शा. आक्षिप्त एवालङ्कारः [ध्व.का. 44] 137 301 15 155 20 आक्षिप्तानां [भ. ना शा. 298 24 इत्येषोऽष्टविधो ज्ञेय [भ ना.शा. 295 5 - सभामध्ये आत्तमात्तमधिकान्तम् 311 17 | इमं कनकवर्णाभं [म.भा.शा.प. 174 15 आदित्योऽयं स्थितो [म.भा.शा.प. 174 13 153 65] 153-19] इवादेरप्रतीतापि 70 27 आपन्नस्वपरोपभुक्तविभवा 16 2 | इष्टजनविप्रयोगाद् 287 1 आपाण्डुगण्डपाली 252 6 | इष्टजनविभवनाशाद् [भ.ना.शा. 300 13 आम असइम्ह ओरम 183 26 /

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