Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ प्रमाणानामुदाहरणानां च पद्यानामकाराद्यनुकमः / 331 रौद्रादयो रसा दीप्त्या [ध्व.का.३२] 133 16 | वाच्यवाचकचारुत्व- [च.का. 26] 128 6 लक्षणं रूपकेऽपीदम् 256 21 वाच्यानां वाचकानां च [ध्व. 3 32] 179 8 लच्छी धूआ जाया दुओ 181 टि.३ वाच्यालङ्कारवर्गोऽयं 181 16 लजानिगूढवदनो [भ ना. शा. 293 24 वाणियय हत्थिदंत 163 1, 163 टि.१ लद्धहरासि विहत्ते 199 26 | वाणीरकुडंगोड्डीण 120 2, 154 9 लब्धास्तत्र पुनास्या वाद्यवृत्तिविभागार्थ [भ. ना, शा, 36 17 लभ्यन्ते यदि वाञ्छितानि 5 19] लयस्योपरि यद्वाद्यं [भ.ना.शा. 37 25 वान्तविरिक्तव्याधिषु 287 23 पूर्वार्धम् / 3] वामा भामा कामा सामा लयेन यत्सम वाद्य 225 15 37 23 लल्ले च मन्मने चैव- [भ.ना.शा. 103 27 वामा याते यामाधामे 225 18 19 49] वालय णाहं दूई 115 12 लावण्यकान्ति [टि. 1 147 2 वाल्मीकिव्यासमुख्याश्च [ध्व. 3 75 90 13 152 18] 180 7 परिकर श्लोकः / ] 178 25 लीलादाढग्गुब्बूढ [मधुमथनविजये] 173 22 विकल्पप्रमितानङ्का- 205 23 लुप्तं धाम वक्रपाणौ कृते चैव [भ. ना. शा. 4. 7 विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा [किराता. 75 1 15 52] . वच्च महच्चिय एकाए [गाथासप्तशत्यां 107 27 विचारणादिसंभूतः [भ. ना. शा. 302 4 सप्तमशतके 944] वणराइ केसहत्था 255 25 विच्छित्तिशोभितकेन 165 4 वत्सेमा गा विषादं 143 1 विज्ञानशौचविभव- [भ. ना. शा.. 293 . 7 . वन्या देवी पर्वतपुत्री 195 3 195 | विज्ञायेत्थं रसादीनां [ध्व. 3 31] 179 4 192 3 | विदूषकः सूत्रधारः [भ ना. शा. 39 1 5 28] 192 3 192 8 विधायापूर्वपूर्णेन्दु 99 15 वपुरनुपम विद्यावाप्ते रूपाद् [भ. ना. शा. 296 8 वस्तुमात्रमपि व्यङ्गयं 141 6 वस्तूपलक्षणं यत्र 232 3 विभावभावानुभाव- [ध्व.का. 66] 79 11 वहिं शीतयितुं 230 22 173 12 वाक्यार्थमतये तेषां [श्लो.वा.] 71 21 | विमतिविषयो य आसीत् [ध्व. 3] 179 18 वाच्यालङ्कारशक्तेस्तु 152 26 वाग्धेनुर्दुग्ध (भट्टनायकः) 112 टि 1 | विमिश्रः श्यामान्तेषु 16 23 वाचकत्वाश्रयेणैव [ध.का. 21] 124 24 | विमृश्यं सुधियामीशैः 227 15 25 195 26 26 10

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