Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ 332 कल्पलताविवेके विरमत घनाः 31 1 | शब्दः संस्कारहीनो यो [वा. प. ब्र. का. 6 11 विरुद्धकाश्रयो यस्तु [ध्व. उ. 3 82 7 149] का. 81] 178 27 शब्दार्थवर्त्यलङ्कारा 119 6 विवक्षिते रसे लब्ध- [व.का. 76] 80 26 शब्दार्थशक्त्याक्षिप्तोऽपि [ध. 46] 142 22 विबिधानामर्थानाम् [भ. ना. शा. 296 11 | शब्दार्थशासनज्ञानमात्रेणैव [ध्व. 7] 112 15 24 17] 149 28 विशुद्धात्माप्यगाधोऽपि 304 18 113 21 विश्रम्भोत्था मन्मथाज्ञाविधाने 183 3 | शब्दे दोषोद्भवस्तावद् [श्लो. वा. 67 1 विषयाश्रयमप्यन्य- [ध्व. 63] 171 11 | कुमारिलभट्टः] विसमइओ च्चिय काण वि 116 13 | शय्या शादलमासनं [नागा. 4 2] 99 158 13 | 2 विस्मयामर्षयोश्चैव [भ. ना. शा. 104 7 शरीरीकरणं येषां [ध. का. 51] 151 23 19 53] / 155 21 वी[धी राणं रमइ . 147 6 152 19, 14.15 शशिवदना (अभिनवगुप्तः) 118 22 वृथा दुग्धोऽनड्वान् शषौ सरेफसंयोगौ [ध्व. 59] 165 10 वेदाङ्गैः स्याज्जलधरमाला 214 25 | शिखरिणि व नु 121 10 वेधामामे मेमाधावे- . 226 17 145 3 वैचित्योपायचित्ताभ्यां [भ.ना.शा. 296 22 | शीर्मा गीर्मा श्रीर्मा धीर्मा 225 22 व्यङ्ग्यव्यञ्जकसम्बन्ध [ध्व.का 13 114 15 शीर्वामा धीर्मा कामा त्वं ___ परिकर श्लोकः] शी श्री(6ष्पूर्जु खू स्मृ स्त्री। 224 ब्यङ्गयस्य प्रतिमामात्रे [ध्व.का 15] 119 14 शीस्त्रीरुक्ते मेंनौः शीर्वा व्यङ्गयस्य यत्राप्राधान्य [ध.का.१४] 119 12 225 6 व्यज्यन्ते वस्तुमात्रेण [ध्व.का.५२] 152 4 शृङ्गार एव मधुरः [व.का. 30] 133 14 155 22 शृङ्गारस्य प्रचरणात् [भ ना शा. 38 27 व्यसनाभिघातभयपूर्व- [भ ना.शा. 292 11 5 27] शृङ्गारस्याङ्गिनो [व. का. 37] 135 23 व्याधिते च जराः च [भ. ना. शा. 103 23 | शृङ्गारे विप्रलम्भाख्ये [ध.का. 31] 133 15 19 49] शोभां पुष्यन्ति 16 22 व्याधीनामेकभावो हि [भ.ना.शा. 301 3 श्रीमानभूद् व्याप्यव्यापकभावो हि 46 11 श्रुक् युक् भुक् रुक् 224 26 व्याहृता 28 15 | श्रुतिदुष्टादयो दोषा [ध्व.का. 34] 135 3 ब्रीडायोगान्नत 166 14 155 10 शनिरशनिश्च तमुच्चै- 160 7 | श्लाघ्याशेषतर्नु . (टि. 1)138 1 162 78 226 19

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