Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________ कल्पलताविवेके यथा बीजाद्भवेवृक्षो 31. 9 | याशीर्गीः 224 19 यद्यपि पुरुषो गायति [भ.ना.शा.] 37 1 | याशीर्वेधा भामासामे 226 25 यद्वञ्चनाहितमतिः [ सुभाषितावली 178 .1 | या स्रष्टुः सृष्टिराद्या- [शाकु. 1 1] 12 18 272] | यां ज्वलन् न ददाहाग्निः 230 27 यद्वामाभिनिवेशित्वं [भ. ना. शा. 88 | युक्तं मानद [31 105] | ये जीवन्ति - 177 20 यमकादिनिबन्धे तु [ध.का. 39 136 17 | ये निबन्धनप्रकारास्ते तम्यामुदाहृतम् / ] रङ्गद्वारे प्रयुक्ते तु [भ. ना. शा. 33 27 यस्त्वलक्ष्यक्रमव्यङ्ग्यो [ध्व.का.५८] 165 6 | रङ्गे पिबतः कार्या भ. ना. शा. 290 15 यस्माच्च लोकपालानां [ भ.ना.शा. 38 19 7 44] 5 23] रजनय इव 163 11 यस्मादभिनयश्चात्र [भ. ना. शा. 38 25 रविसङ्क्रान्तसौभाग्य- [रामा.अ.का. 126 2 16 13] यस्मादुत्थापयन्यत्र [भ. ना. शा.] 38 17 यस्मै च रोचते नेदं 227. 17 रसबन्धोक्तमौचित्यं [ध्व.का. 65] 172 23 यं प्रेक्ष्य चिर- [ हयग्रीववधे] 116 4 रसभावतदाभास- ध. 25] 126 21 या गीः शीः का दिग्वित् / 224 24 रसभावादितात्पर्य - [ध्व.का. 28] 130 26 या गीः शीस्रः 224 21 रसवन्ति हि वस्तूनि [ध्व.सं.श्लो.] 136 15 या निशा सर्वभूतानां [श्री.भ.गी. 157 23 रसस्य स्याद् [ध्व. 3 19] 178 24 2 11] रसाक्षिप्ततया [ध्व. का. 39] 136 9 रसाद्यनुगुणत्वेन [भरतना. शा.] 179 12 यानि सौम्यार्थयुक्तानि [भ.ना.शा. 104 9 रसान्तरसमावेशः [व. का. 78] 86 6 19 54] 178 26 यानि स्युस्तीक्ष्यरूक्षाणि [भ.ना.शा. 104 11 | | रसान्तरान्तरितयो- [ध्व.का. 83] 84 1 178 27 यामा माकामा भामा वाया वा 226 5 | रसाभासाङ्गभावस्तु [ध्व. का. 39 136 19 यामा माया ज्ञस्तूर्भामा स्त्रीसामेना 224 तम्यामुदाहृतम् / ] यायामामा 224 4 | राजानमपि सेवन्ते 186 13 यावन्न यात्युपचयं / 161 17 रामेण निहतं दृष्ट्वा या वा मा भामा कामा वा। 224 27 राश्योरुभयमुखयो 201 8 या वा मा भामा गीः श्रीह्रींर्धाः स्त्री। 225 5 राहोश्वन्द्रकलामिव [मालतीमा. 228 20. या वामा सा धामा मेना 227 3 5 27] याशीर्गीः श्रीही पू- .. 224 17 | रुदता कुत एव सा [रघु. 8 85] 21 12. याशीर्गीः श्रीः। 224 23 | रूढा ये विषयेऽन्यत्र [ध्व.का 19] 123 18 याशीर्गीः श्रीधी मास्त्रोही जूंर्मू 225 28 | रूपकादिरलङ्कारवर्गों [ध्व.का. 49] 146 3 या शीर्गीः श्री धी स्त्री होभीः 226 26 / रो नराविह रथोद्धता लगौ 207 13

Page Navigation
1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550