Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 517
________________ 328 कल्पलताविवेक पुत्रक्षयेन्धन 161 10 | प्रसिद्धेऽपि प्रबन्धानां [ध. का. 85 25 पूर्व शरीरादुद्भूना [भ. ना. शा.] 37 16 ___ 77] 178 26 पूर्वे विशृङ्खलगिरः [ध्व. परिकर श्लो. 90 11 | प्रस्ताराङ्के पदभक्ते 202 17 का. 75] 178 25 प्रस्तारो नष्टमुद्दिष्टं 195 7 पृथ्वि स्थिरीभव 21 15 / प्रह्वसत्सर्व 186 22 प्रकारोऽन्यो गुणीभूत- [ध. उ. 180 3 | प्राणा येन 117 19 प्रातुं धनरर्थिजनस्य वाञ्छां 159 7 प्रकारोऽयं गुणीभृत- [ध्व. उ. 185 7 प्राप्तश्रीरेष कस्मात् (टि. 3 146 18 152 18 प्रकृतिप्रत्ययमूला 12 22 | प्राप्तानामुपभोगः [भ ना. शा. 293 9 प्रतिकूलविभावादि [का प्र. 7 82 79 4 का. 61] प्राप्ये बाप्राप्ये वा [भ. ना. शा. 294 15 प्रतिग्रहीतुं प्रणयिप्रियत्वात् [कु.सं 142 1 प्रोवृत्तनिस्तब्धपुटा [भ. ना. शा. 84 21 प्रतिज्ञाहेतुदृष्टान्तदुष्ट [ काव्यादर्श 62 19 8 45] 3 12] प्रतीयमानं पुनरन्यदेव [ध्व.का. 4] 105 27 | प्रौढोक्तिमात्रनिष्पन्नशरीरः [ध्व. 47] 144 16 फेनं च पञ्चमे [भ. ना. शा. 301 11 प्रत्यक्ष कल्पनापोढम् [शिष्टदर्शनम् ] 51 20 प्रत्याख्यानरुषः 98 15 156 22 बाधा खङ्गकृता 227 4 प्रत्याहारोऽवतरणं [भ. ना. शा. 35 17 बाष्पपरिप्लुतनयनः 287 3 बिबाहरे पियाणं 160 13 प्रथमे त्वभिलाषः [भ ना. शा. 303 भक्त्या बिभति नकवं [ध. का 121 25 स्यात् 24 160] (पूर्वार्धम् ) 17] 122 4 प्रथमायां यती लोटे 195 16 अतिव्याप्तेरथाव्याप्तेन [ ,,] 125 13 प्रदीप इव निर्वाणे 18 15 ( उत्तरार्धम् ) प्रधानेऽन्यत्र वाक्याथें [ध.का. 27] 128 11 भम धम्मि 183 21 प्रबन्धे मुक्तके बापि [ध्व.उ. 2 80 14 भयानके सबीभत्से भि. ना शा. 104 15 का. 73] 178 24 19 57] प्रबन्धेऽपि रसादीनां [का. प्र. 79 8 भवति हि तामरसं तु नजज्यः 217 15 ___ 7 82 का 61] भविष्यत्यपरः प्रभेदस्यास्य विषयो 184 13 भाका भूनौर्यामामार्या 226 11 प्रभ्रश्यत्युत्तरीयस्विषि (टि. 1)177 14 भाति पतितो लिखन्त्याः 304 24 प्रमिताक्षरा सजससैस्तु गणैः 214 24 | भाना याया भूर्धाया ना- 226 12 प्रयच्छतोच्चैः कुसुमानि मानिनी 184 25 भावनाबलतः स्पष्टं प्रसन्नगम्भीरपदाः [ध्व. 4 35] 181 6 भावनाभाव्य एषोऽपि (भट्टनायकः) 307 10

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