Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 516
________________ 2069 78 10 प्रमाणानामुदाहरणानां व पद्यानामकाराद्यनुक्रमः / . 327 धूमभावेऽनिभावेन . . 59 13 / नीरसस्तु प्रबन्धो यः [व. का. 75 90 9 धृतिः क्षमा दमः शौचं परिकर श्लोकः 178 25 धन्यात्मभूते शृङ्गारे [ध्व.का. 38] 136 4 | नेयं विरौति [भ'मह 3 22] 116 6 न दूषणायालमुदाहृतो [भामह. 4 51] 42 13 | नोपदेशः कुतोऽप्यस्ति 227 13 नभःखण्डं 31 8 | पङ्क्तौ विशन्तु 120 10 न चेह जीवितः [म. भा. शा. प 174 9 पठित्वा स्वेच्छया श्लोककश्चित् 153 12] ननभरकलिता गदितोज्ज्वला 214 24 पतितोवपुटा साम्रा [भ ना.शा. 84 26 ननररकलिता प्रभाश्चेन्द्रियैः 215 14 8 47] नववयसि हयग्रोववधे] पत्याच 263 19 नवसङ्गमभीरु 228 2 पत्युः शिरश्चन्द्रकलामनेन (कु. सं. 184 17 नष्टस्मृतिर्हतगति [भ. ना शा. 290 13 7 19] 1854 पदानां स्मारकत्वेऽपि 165 1 नातिदूरे च - [भ. ना. शा. 102 20 | | पररूपं स्वरूपेण 57 24 ( पूर्वार्धम् ) 19 42] .. परसौभाग्येश्वरता 289 उरसोदाहृतं ( उत्तरार्धम् ) [,] 102 23 परिगीतक्रियारम्भः [भ. ना. शा 36 15 16 47] नानाशास्त्रार्थनिष्पन्ना [भ ना. शा. 299 22 | 7 81] परिपोषं गतस्यापि [ध्व. का. 75 ] 87 24 नान्दीप्रयोगे च कृते भ. ना शा. 40 15 (पूर्वार्धम्) रसस्य स्याद्विरोधाय [ ,, ] 90 2 -- (उत्तरार्धम् / ) नान्यत् किञ्चित 186 3 | परिभ्रमन्मूर्धजपट्पदाकुलैः [किराता. 29 65 20 नित्यं न भानं यस्य 5 निमित्ततो यत्तु वचो . 29 24 परिभ्रष्टो रागस्तव 265 7 परोक्षावाहने चैव [भ. ना. शा. 103 19 निरीक्ष्य विद्युन्नयनैः 19 47] 76 25 पल्लवकलशविराजिनी निर्वाणभूयिष्ठमथास्य [कु. सं. 141 25 319 23 पश्येत् कश्चित् 3 52] . 130 17 पंथिय ! न एत्थ [गाथासप्तशती निषादवान् स [भ. ना. शा. 101 23 879]] 19. 39] पाण्डित्यमहो 31 11 निःशेषच्युतचन्दनं [अमरु. 75] 150 8 पीणत्तण 272 17 निःश्वासैः सोच्छ्वासः [भ.ना शा. 298 9 पुटौ प्रस्फुरिती [भ. ना. शा. 84 23 99 8

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